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श्री आसकदशांग सूत्र
विवेचन - दूसरे अणुव्रत को ग्रहण करने के बाद आनंद श्रमणोपासक ने क्रम प्राप्त तीसरे अणुव्रत को ग्रहण किया। इसमें स्थूल अदत्तादान' का प्रत्याख्यान होता है। वे प्रतिज्ञा करते हैं - हे भगवन्! मैं यावज्जीवन के लिए स्थूल अदत्तादान (मोटी-चोरी) मन, वचन और काया से न तो स्वयं करूँगा और न दूसरे से करवाऊँगा। ___स्थूल अदत्तादान - १. सेंध लगा कर - दीवाल अथवा दरवाजा तोड़ कर चोरी करना २. गांठ खोल कर - सामान की पेटी में से सामान चुराना ३. ताले को कुंची द्वारा खोल कर - ताला तोड़ कर अथवा अन्य चाबी से ताला खोल कर चोरी करना ४. मार्ग में चलते हुए को लूट कर - किसी को जोर जबरदस्ती से लूटना अथवा विश्वासघात कर जेब काट लेना ५. 'यह वस्तु अमुक की है' - ऐसा जान कर भी चोरी की भावना से उस वस्तु को लेना। आवश्यक सूत्र में इन सब को ‘बड़ी चोरी' माना गया है। श्रावक इस प्रकार की बड़ी चोरी का त्याग करता है। ____ अवशेष अदत्तादान - चोरी की मनोवृत्ति के अभाव में परिचित अथवा परिचित व्यक्ति की वस्तु लेना अथवा पुनः देना अथवा उपयोग में ले लेना। व्यापार व्यवसाय में भी जिसका परस्पर विश्वास हो उसकी किसी भी वस्तु को लेना या देना। राजकीय व्यवस्था, नियम संतोषप्रद नहीं होने से कितनेक नियमों का पालन नहीं होता। इसके अलावा भी व्यापार व्यवसाय की वे सूक्ष्मतम प्रवृत्तियाँ जिनका उपरोक्त पांच स्थूल अदत्तादान में समावेश नहीं होता है, वे सब प्रवृत्तियाँ अवशेष अदत्तादान में समझनी चाहिये।
यद्यपि अवशेष हिंसा, झूठ और चोरी से यथायोग्य पाप का सेवन और कर्म बंध तो होता ही है किन्तु गृहस्थ जीवन की अनेक परिस्थितियों के कारण उनकी अवशेष में गणना की गयी है। उनका भी श्रावक को विवेक पूर्वक त्याग का लक्ष्य रखना चाहिये।
४. स्वदार संतोष व्रत तयाणंतरं च णं सदारसंतोसिए परिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ एक्काए सिवणंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खा(इ)मि मणसा वयसा कायसा ।
कठिन शब्दार्थ - सदारसंतोसिए - सदार - स्व-अपनी विवाहिता पत्नी में संतोष, . णण्णत्थ- सिवाय, एक्काए - एक, अवसेसं - अवशेष-अतिरिक्त, मेहुणविहिं - मैथुन विधि का, पच्चक्खामि - प्रत्याख्यान - त्याग करता हूँ।
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