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श्री उपासकदशांग सूत्र
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तयाणंतरं च णं चउप्पयविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ चउहि वएहिं दसगोसाहस्सिएणं वएणं, अवसेसं सव्वं चउप्पयविहिं पच्चक्खामि ३'।
कठिन शब्दार्थ - चउप्पयविहिपरिणामं - चतुष्पद विधि परिमाण।
भावार्थ - इसके बाद चतुष्पद विधि का परिमाण करते हैं - 'दस हजार गायों का एक व्रज, ऐसे चार व्रज के अतिरिक्त शेष पशु-धन का प्रत्याख्यान करता हूँ।'
विवेचन - चौथा अणुव्रत ग्रहण करने के बाद क्रम से पांचवें स्थान वाला परिग्रह परिमाण व्रत आनंद जी इस प्रकार ग्रहण करते हैं - 'हे भगवन्! मैं चार करोड़ स्वर्ण मुद्राओं से अतिरिक्त धन का निधान नहीं रखूगा। मैं चार करोड़ स्वर्ण मुद्राओं से अधिक का व्यापार नहीं करूंगा। मैं चार करोड़ स्वर्ण मुद्राओं के अतिरिक्त घर बिखरी नहीं रखूगा। शेष सब स्वर्ण-रजत का मन, वचन, काया से त्याग करता हूँ।' ___चतुष्पद विधि का प्रत्याख्यान इस प्रकार करते हैं - 'हे भगवन्! दस हजार पशुओं का एक व्रज होता है ऐसे चार व्रज यानी चालीस हजार गायों के पशु धन से ज्यादा नहीं रखूगा। . शेष सब चतुष्यद विधि का मन, वचन, काया से त्याग करता हूँ।' ____ तयाणंतरं च णं खेत्तवत्थुविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ पंचहिं हलसएहिं णियत्तणसइएणं हलेणं अवसेसं सव्वं खेत्तवत्थुविहिं पच्चक्खामि ३'।
कठिन शब्दार्थ - खित्त - क्षेत्र - खेत जैसी खुली जमीन, वत्थु - वास्तु - ढंकी जमीन-मकान, नोहरा आदि, पंचहिं हलसएहिं - पांच सौ हल, णियत्तणसइएणं - सौ निवर्तन।
भावार्थ - तदनन्तर आनंद जी श्रेत्र वास्तु विधि का परिमाण करते हैं - 'सौ निवर्तन का एक हल, ऐसे पांच सौ हल उपरान्त शेष सभी क्षेत्र वास्तु विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।' विवेचन - निवर्तन का माप इस प्रकार हैं -
दशकरै भवेत् वंश, विंशवंशे निवर्तनम्।
निवर्तन शतैर्मानम् हलक्षेत्रं स्मृतं बुधैः॥ अर्थात् - दस हाथ का एक बांस, बीस बांस का एक निवर्तन, सौ निवर्तन का एक हल होता है - ऐसा बुद्धिमानों का कहना है।
अब हम पांच सौ हल का नाप निकाल सकते हैं -
दस हाथ = एक बांस। बीस बांस = २०० हाथ। २०० हाथ = १ निवर्तन। १०० निवर्तन = २००० बांस = २०००० हाथ = एक हल।
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