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श्री उपासकदशांग सूत्र
दिसायत्तिएहिं चउंहिं वाहणेहिं संवाहणिएहिं, अवसेसं सव्वं वाहणविहिं पच्चक्खामि ३' ५।
भावार्थ - तदनन्तर आनंद श्रमणोपासक वाहन विधि का परिमाण करते हैं - चार वाहन (जलयान) यात्रा के लिए और चार वाहन माल ढोने के लिए रख कर मैं शेष वाहन विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
विवेचन - छकड़े व जहाज बारबार काम में लिए जाने वाले होने से परिभोग की मर्यादा में आते हैं। सोने चांदी के गहनों की मर्यादा भी सातवें व्रत में गिनी जाती है। चीजों की मर्यादा तो सातवें व्रत की वस्तु है पर उनका मूल्य पांचवें व्रत का विषय है। कीमत तो परिग्रह परिमाण में शामिल हैं तथा संख्या सातवें व्रत में शामिल है। आनंद जी ने जो चार करोड़ स्वर्ण मुद्राओं के मूल्य की घर बिखरी रखी है वह कीमत हजार छकड़ों, चार जहाजों के अलावा भी बहुत सी चीजें शामिल गिनने पर भी कम नहीं पड़ती है। अतः आनंद श्रमणोपासक के व्रत में बाधा नहीं आई है।
७. उपभोग परिमाण व्रत तयाणंतरं च णं उवभोगपरिभोगविहिं, पच्चक्खायमाणे उल्लणियाविहिपरिमाणं करेइ, ‘णण्णत्थ एगाए गंधकासाईए, अवसेसं सव्वं उल्लणियाविहिं' पच्चक्खामि ।
कठिन शब्दार्थ - उवभोगपरिभोगविहिं - उपभोग-परिभोग विधि का, उल्लणियाविहिआर्द्र नयनिका विधि - आर्द्र-गीलापन, नयन-दूर करने वाला। स्नान के बाद पानी से भीगे शरीर को पोंछने के लिए जो अंगोछा(टवाल) आदि काम में लिया जाता है वह आर्द्रनयनिका विधि में शामिल है, गंधकासाईए - सुगंधित काषायिक वस्त्र - सुगंध से युक्त लाल रंग का रोएंदार वस्त्र (टवाल)।
भावार्थ - तब आनंद श्रावक ने सातवें व्रत में उपभोग परिभोग विधि के प्रत्याख्यान में १. आर्द्रनयनिका विधि का परिमाण किया - 'मैं सुगंधित काषायिक वस्त्र के सिवाय शेष आर्द्रनयनिका विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।'
विवेचन - एक बार काम में लेने के बाद जिसका दुबारा उपयोग न हो सके वह उपभोग
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