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श्री उपासकदशांग सूत्र **-*-*-*-04-10-22-8--0-0-8-0-0-12-10-08-00-0-0-10-19-09-08-00-00-00-12-12-10-02-8-2-8-80-90-9-12-12-28-02-2
____ मेढी - मेढि अर्थात् केन्द्र। गायटे पर बैलों को चलाने के लिए बीच केन्द्र में लकड़ी से अर्थात् मेढी के चारों ओर १०-१५ बैल बांधते हैं। कुशल किसान मेढी के निकट पूर्ण ताकत वाले बैल को रखता है वह बैल मेढीया (मेढ़ीभूत) कहलाता है। वह मेढ़ीया बैल सभी बैलों के हिचकोले हिचके सहन करते हुए भी चलता रहता है। इसी तरह आनंदजी भी मेढ़ी के समान सबका कहा हुआ सुनते थे। केन्द्रीभूत थे।
पमाणं - पहले संयुक्त परिवार थे। अर्थात् एक ही परिवार में सौ-पचास सदस्य भी साथ रहते थे। वहाँ कलह हो जाना सहज था पर वहा आनंद प्रमाणभूत थे। उनकी दी हुई व्यवस्था को प्रमाणभूत माना जाता था। वे बड़े विवेकशील थे। परिवार का संगठन कैसे अक्षुण्ण रहे, विनय आदि गुण कम न हों, आज्ञा पालन की रुचि बनी रहे, इसलिए वात्सल्यता के साथ सबको समझाते थे। मात्र एक अनुशासन से सबका सर्वतोमुखी विकास होता है। __आहारे - जैसे शरीर के लिए आहार जरूरी है वैसे ही आनंदजी भी सबके लिए पोषण देने वाले तथा शोषण से बचाने वाले थे।
आलंबणं - जैसे धरती सभी जीवों के लिए सहारा देने वाली है वैसे ही वे धरती. के समान सबको सहारा देने वाले थे।
चक्खू - जैसे आंख के बिना शरीर सूना है वैसे ही वे सबके पथ प्रदर्शक एवं दिशा निर्देशक होने से आंख के समान थे।
मेढीभूए - मेढ़ी के समान थे। सव्वकज्जवड्डावए - सभी कार्य आगे बढ़ाने वाले थे। प्रगति कराने वाले थे।
शिवानंदा तस्स णं आणंदस्स गाहावइस्स सिवाणंदा णामं भारिया होत्था, अहीण जाव सुरूवा आणंदस्स गाहावइस्स इट्ठा आणंदेणं गाहावइणा सद्धिं अणुरत्ता अविरत्ता इट्ठा सद्द जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ। .
कठिन शब्दार्थ - भारिया - भार्या - विवाहिता पत्नी, अहीण - अहीन - प्रतिपूर्ण
* मेढि उस काष्ठ दंड को कहा जाता है जिसे खलिहान के बीचोबीच गाड़ कर जिससे बांध कर बैलों को अनाज निकालने के लिए चारों ओर घुमाया जाता है।
पाठान्तर - सिवणंदा
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