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प्रथम अध्ययन - श्रमणोपासक आनंद - आनंद का व्यक्तित्व
विवेचन - विपुल ऋद्धि समृद्धि वाले को 'गाथापति' कहा जाता है। 'अड्ढे जाव अपरिभूए' में 'जाव' शब्द से इस पाठ का ग्रहण हुआ है -
'अड्डे दित्ते विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणे बहुधणजायरूवरयए आओगपओगसंपउत्ते विछड्डियपउरभत्तपाणे बहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूए बहुजणस्स अपरिभूए।'
(भगवती सूत्र श. २ उ०५) ___ अर्थ - आनंद धन-धान्यादि से परिपूर्ण, तेजस्वी, विख्यात, विपुल भवन, शयन, आसन, यान वाले, स्वर्ण-रजत आदि प्रचुर धन वाले और अर्थलाभ के लिए धनादि देने वाले थे। सब के द्वारा भोजन किए जाने पर भी प्रचुर आहार-पानी बचता था। गाय-भैंस आदि दुधारु जानवर तथा नौकर-चाकरों की प्रचुरता थी। बहुत-से लोग मिल कर भी उनका पराभव नहीं कर सकते थे।
... 'चत्तारि हिरण्णकोडीओ' का आशय उस समय की प्रचलित स्वर्णमुद्राओं से है। भण्डार में सुरक्षित निधि के रूप में चार करोड़ स्वर्ण मुद्राएं अथवा उतने मूल्य के हीरे-जवाहरात आदि रहा करते थे। चार करोड़ स्वर्णमुद्राओं के मूल्य का धन व्यापार में लगा हुआ था। चार करोड़ का अवशेष परिग्रह घर-बिखरी के रूप में फैला हुआ था।
- आनंद गाथापति के चार गोकुल (वज्र) थे यानी ४०,००० गायें थी। उक्त विवरण से प्रकट होता है कि गो पालन का कार्य उस समय बहुत उत्तम माना जाता था। समृद्ध गृहस्थ इसे रुचि पूर्वक अपनाते थे।
आनंद का व्यक्तित्व से णं आणंदे गाहावई बहूणं राईसर जाव सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य मंतेसु कुडंबेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य णिच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्सवि य णं कुडुंबस्स मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए जाव सव्वकजवड्डावए यावि होत्था। ___ कठिन शब्दार्थ - बहसु - बहुत से, राईसर - राजा-मांडलिक राजा और ईश्वर-ऐश्वर्य शाली प्रभावशाली पुरुष, सत्थवाहाणं - सार्थवाह-परदेश में व्यापार करने वाले, कज्जेसु - कार्यों में, कारणेसु - कारणों में, मंतेसु - मंत्रेषु-मंत्रणाओं में, कुडुंबेसु - पारिवारिक कार्यों (समस्याओं) में, गुज्झेसु - गोपनीय विषयों में, रहस्सेसु - रहस्यों में, णिच्छएसु - निर्णयों
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