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श्री उपासकदशांग सूत्र
एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे णामं णयरे होत्था । वण्णओ। तस्स (णं) वाणियगामस्से णयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए दूइपलास णामं चेइए। तत्थ णं वाणियगामे णयरे जियसत्तू राया होत्था । वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे आणंदे णामं गाहावई परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए ।
तस्स णं आणंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ णिहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वुडिपत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ।
कठिन शब्दार्थ - बहिया - बाहर, उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए - उत्तर पूर्व (ईशान कोण) के दिशा भाग में, दूइपलासए - द्युतिपलाशक, चेइए - चैत्य ( उद्यान), गाहावई - गाथापति - गृहपति - घर का मुखिया सेठ, परिवसइ रहता था, अड्डे - आढ्य - प्रचुर धन सम्पत्ति से युक्त, अपरिभू - अपरिभूत- किसी से नहीं दबने वाला, चत्तारि - चार, हिरण्णकोडीओकरोड़ स्वर्ण मुद्राएं, णिहाण पउत्ताओ - निधान प्रयुक्ता फिक्स डिपोजिट सुरक्षित निधि, वुढिपउत्ताओ - वृद्धि प्रयुक्त के लिए लगी हुई, पवित्थरपउत्ताओ - प्रविस्तार प्रयुक्त व्रज-टोला, दसगोसाहस्सिएणं - दस हजार गायों का ।
भावार्थ - आर्य जम्बूस्वामी ने पूछा - हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें अंग उपासकदशा सूत्र के दस अध्ययन फरमाये हैं तो प्रथम अध्ययन में भगवान् ने क्या भाव फरमाये हैं? सो आप कृपा पूर्वक फरमावें ।
भगवान् सुधर्मा स्वामी बोले- हे जम्बू ! उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। उस नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा ईशानकोण में द्युतिपलाशक नामक चैत्य था । जितशत्रु नामक वहां का राजा था। राजा का वर्णन औपपातिक सूत्र में ज्ञातव्य है । उस वाणिज्यग्राम में आनंद नामक गाथापति सम्पन्न गृहस्थ रहता था। वह आढ्य ( धनाढ्य ) यावत् अपरिभूत था । उस आनंद गाथापति का चार करोड़ का धन (स्वर्ण मुद्राएं) भण्डार ( खजाने) में रखा था। चार करोड़ का धन व्यापार में लगा था। चार करोड़ स्वर्ण घर बिखरी ( धन, धान्यद्विपद चतुष्पद आदि साधन सामग्री) में लगा हुआ था । उसके चार व्रज - - गोकुल थे। प्रत्येक व्रज
( गोकुल) में दस हजार गायें थी ।
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भूमिगत निधान में रखी गई - व्यापार वाणिज्य में धन वृद्धि
घर बिखरी में लगी हुई, वया
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