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राजस्थानी शब्द - सम्पदा को तेरापंथ का योगदान
'सरधा से सबूत' में- नमोत्थुणं समणस्स भगवओ ! न्हाए कय बलिकम्मे । पम्मेदढ़ मे ।
अन्यत्र
अनाक्रमण
अनिकेत
अनियताचारी
- अहा सुहं ( यथा सुखम् )
उन्मज्जा तस्स दुल्लहा (उन्मज्जनं तस्य दुर्लभम् )
–आदि ।
इसी क्रम में तेरापंथी सम्प्रदाय के पारिभाषिक शब्दों को बड़ी संख्या में प्रयुक्त कर राजस्थानी शब्द भंडार की श्रीवृद्धि की गयी है । साहित्य में प्रयुक्त कतिपय पारिभाषिक शब्द द्रष्टव्य हैं-
अकर्म
अन्तश्चेतना
अन्तःशल्य
अपछन्दा— स्वच्छंदाचारी
अपयोग — प्रतिकूल ग्रह-नक्षत्र का
योग
अजरामर पद
अट्ठाई - अष्टाह्निक पर्व पर्युषण का
प्रथम दिन ।
अणगार- :- अनागार
अणुव्रत
अतिक्रमण
अनशन - उपवास आदि तपस्या
अन्तर्जागरणा
अन्तर्ज्योति
अन्तर्मुखता
देवाप्पिया (देवानुप्रिय )
tor समिक्ee (प्रज्ञां समीक्षे )
पत्तेयं सायं, पत्तेयं वेयणा ( आत्मनः सुखं, आत्मनः वेदना )
मा पडिबंध करेह (मा प्रतिबन्धं कुरुष्व )
संपक्खए अपगमप्पएणं ।
अनुज्ञा
अनुप्रेक्षा
अनेकान्त
अन्तरंग - आह्लाद - स्वाद
अन्तराय
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अपान
अप्रकम्प
अप्रतिकर्म
अप्रमाद
अभयवृत्ति
अभिग्रह
अभेद दृष्टि
अमुत्र - परलोक
अरिहन्त
१५
अवग्रह-याचना
अवसर्पिणी
अशौच भावना
अष्ट अघ
अष्टक ओच्छ
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