Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan
Author(s): Devnarayan Sharma, Others
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 214
________________ तेरापंथ प्रबोध-एक अध्ययन १९९ गादी, ठावो, सवारे, संभार जैसे गुजराती शब्दों का समावेश हुआ है, वहीं ठेठ राजस्थानी के कुछ शब्द गीत की प्रभावोत्पादकता को सम्बद्धित होते हैं---उणायत, पगफेरो, थोकड़ा, नेगचार, खलता खोड़, सिओ-दाओ आदि । ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस गीत का माहत्म्य है। प्रथम पद्य में आचार्य भिक्षु का जन्म "सतरै सै तयासी संवतं सुखकार हो..." से प्रारंभ कर 'अट्ठारै सतरै स्यं बत्तीस लग विषम बगत बीत्यो...' 'अट्ठार तेपन में दीक्षा संस्कार"" गुणसट्ठ मा-सुद सातम अंतिम मर्यादा पत्र है...'आचार्य भिक्षु के जीवन भर की समस्त महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण विक्रम संवत् के माध्यम से बताते हुए ऐतिहासिक दृष्टि से कालक्रम का सत्यापन किया गया है । इस गीत में तेरापंथ की पूरी पट्टावली, समस्त साध्वी प्रमुखाओं का नामांकन, हेमराज स्वामी का मूल्यांकन और साथ में आचार्य तुलसी युग की देन अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान, आगम-संपदा, साहित्य सृजन, जैन विश्व भारती, पारमार्थिक-शिक्षण-संस्था, समण श्रेणी, जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय आदि की चर्चा है । आचार्य तुलसी द्वारा संपादित, प्रेरित सर्वजन-हिताय सर्व-जन-सुखाय कार्यों की संक्षिप्त झलक अजाने मानस को जिज्ञासु बना देती है वही परिचित व्यक्ति को पूरी ऐतिहासिक यात्रा करवा देती है। गीतकार ने गीत के माध्यम से संस्कृति की अभिव्यक्ति दी है। इसमें श्रमण संस्कृति का भावपूर्ण और यथा चित्रण हुआ है। साथ ही दर्शन और आचार की परम्पराओं का समुचित उल्लेख इस कृति का वैशिष्ट्य है । नय निक्षेप, धर्म, अहिंसा, सापेक्षवाद, साध्य-साधन जैसे शब्दों से दार्शनिक अवधारणाओं पर स्वत: प्रकाश पड़ रहा है। कवि ने कहीं संक्षेप रुचि को अपनाया है तो कहीं विस्तार रुचि को स्थान दिया है । पूरी घटना का सार संक्षेप 'पग-पग पर लोग लगास्यूं थारै लार हो "मर पूरा देस्यां, "पाली घी, घी सहित घाट ली, शेर गुफा में ही जनमें ये सब समास शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं । आचार्य भिक्षु का जन्म, विवाह, वैराग्य, दीक्षा के पश्चात् कथनी-करनी को देख उठने वाला अन्तरद्वन्द्व तथा हेमराजजी स्वामी की दीक्षा का वर्णन व्यास शैली का उदाहरण है। __ संक्षिप्त में तेरापंथ-प्रबोध एक श्रृंखला बद्ध इतिहास है जिसमें संस्मरणों की मिठास है, सैद्धांतिक सार है, श्रद्धा का उपहार है। संदर्भ: १. तेरापंथ-प्रबोध-सम्पादिका, महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा, पद्य स. १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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