Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan
Author(s): Devnarayan Sharma, Others
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 218
________________ तेरापंथ का राजस्थानी प्रबंध-काव्य २०३ इन प्रबन्ध काव्यों की एक प्रमुख प्रवृत्ति वीर-भावना की रही है। वीरत्व तो जैसे राजस्थानी माटी के कण-कण में समाया है। यहाँ एक से एक विकट योद्धाओं ने जन्म लिया और उनके अद्वितीय शौर्य को अंकित कर उनकी यशकीति को अमर कर देने वाले काव्यों की रचना कवियों ने की। आदिकाल की पहचान 'पृथ्वीराज रासो' इस दृष्टि से उल्लेखनीय है । 'हम्मीर रासो' इसी शृंखला की अन्य महत्वपूर्ण रचना है। पंचम वेद से संज्ञायित 'पृथ्वीराज राठौड़ की' 'बेलि कृष्ण रूक्मणी री' ने तो राजस्थानी के प्रबन्ध-काव्यों की परम्परा को हो सम्पन्न नहीं किया अपितु राजस्थानी भाषा की गरिमा को भी द्विगुणित किया है । इस कृति को विश्व वाङ्मय में भी समान रूपेण आदर प्राप्त हुआ है। 'ढोला मारू रा दूहा' और 'माघवानल कामकन्दला' प्रेम काव्य परम्परा की वंदनीय कृतियाँ हैं जिन्होंने आडम्बर, रूढ़ि और सायास शिल्प संरचना के चमत्कार से दूर रह कर शुद्ध हृदयोच्छ्वास को स्थानीय रंग मे सिक्त कर बिम्बायित किया है। हर जी रो व्यावलों शृंगार और वीर रस की समन्वित हृदयग्राह्य व्यंजना पूर्ण प्रबन्ध काव्य कृति है । इसी परम्परा में आधुनिक काल में भी प्रबन्ध-काव्यों का रचना प्रवाह विद्यमान है। इनके माध्यम से रचनाकारों ने वर्तमान का कलात्मक लेखा पुराख्यानक मुद्रा में प्रस्तुत किया है। पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक एवं लोक गाथाएं आधुनिक प्रबन्ध काव्य कृतियों की कथाधार बनी है, किंतु युग की प्रखर आवाज इन कृतियों को प्रासंगिक बनाती है। डा० मनोहर शर्मा कृत 'कुंजो', पंछी, 'मरवण', 'अमर फल', अंतरजामी, श्री सत्यप्रकाश जोशी कृत-राधा, कान्हमहर्षिकृत-मरुमयंक, विश्वनाथ विमलेशकृतरामकथा, गिरधारी सिंह परिहारकृत मानखो एवं करणीदान बारहठकृत शकुंतला नाम्नी कृतियाँ इस दृष्टि से उल्लेखनीय एवं चचित रही हैं। तेरापन्थ का राजस्थानी प्रबन्ध काव्य राजस्थान के चारण कवियों ने जहाँ एक ओर अपनी मातृभूमिमूर्ति के कर-कमल में तलवार और दूसरे में वीणा समर्पित की, वहाँ दूसरी ओर धर्मनिष्ठ जैन साहित्यकारों ने माँ के वरदहस्त को अहिंसा एवं शांति की पीयूषर्षिणी धारा में अभिसिंचित किया। इनमें तेरापन्थ के आचार्य साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय है। समाज और संस्कृति को नूतन दष्टिधारा से जोड़ने के साथ-साथ इस पंथ के आचार्यों ने साहित्य की विविध विधाओं में अपनी लेखनी का सफल प्रयोग किया तथा ऐसी रचनाएं सरस्वती के भंडार को अर्पित की, जो युगों-युगों तक सत्प्रेरणा का दिव्य प्रकाश फैलाती रहेंगी। आगमिक, तात्त्विक एवं दार्शनिक कृतियों के साथ-साथ आख्यानात्मक, जीवन चरित एवं मुक्तकगीत आदि विभिन्न विधाओं को समृद्ध और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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