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आचार्य श्री तुलसी विरचित
'शैलीवैज्ञानिक संदृष्टि
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वे रचनाकर्म करते हैं, उसकी प्रकृति से, उसके मुहावरों से खूब परिचित होते हैं | राजस्थानी भाषा के बहुप्रयुक्त शब्दों का उन्होंने सजगता से चयन किया
१. गुण 'नन्दनवन' लड़ालूम्ब लहरै " २. भीणी-झीणी सीख छाणे, जाणे अमृत भरें "
३. दोन्यूं गोड्यां ढाल, द्विकर जोड़ डालिम बदै "
४. कानाबाती पल-पल है, आ के हलचल है, हलचल है" ५. सुण्या बात मनगमती, जिवड़ो म्हांरो भी ललचाव "
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इन पंक्तियों में प्रयुक्त 'लड़ालूम्ब', 'भीणी-झीणी', 'दोन्यू गोड्यां ढाल', 'कानाबाती', 'मनगमती' शब्द राजस्थानी लोक और साहित्य में बहुप्रयुक्त शब्द हैं, इनमें राजस्थानी माटी की सुगंध है, इनमें राजस्थानी जनमानस बोलता है, ये शब्द स्वयं बोलते हैं ।
राजस्थानी भाषा के शब्दों का चयनपूर्ण प्रयोग माणक महिमा में भी देखने योग्य है
तोड़ तिखले की ज्यू तत्खण निविड न्याति जन नेह ।"
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भणसी-गुणसी सद्गुण चुणसी, जौहरी पुत्र सुजाण । १०
जोहरी पुत्र के साथ 'चुणसी - गुणसी' क्रियाएँ बहुत सटीक हैं । अंग्रेजी भाषा के टाइम से बना राजस्थानी प्रयोग 'टेमोटेम' बहुप्रचलित है, 'माणक महिमा' में भी यह प्रयोग है
संत सत्यां री वंदना, साभं टेमोटेम । ( माणक महिमा, पृ० ५१ ) धारासार वर्षा के लिए सघन घनाघन रीझ' और 'निपट कलह की
नूध' में 'नूंध' ठेठ राजस्थानी प्रयोग हैं, राजस्थानी भाषा का प्रयोक्ता इन शब्दों के अर्थगौरव से सुपरिचित है ।
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अहं और हठ के लिए 'अकड़-पकड़' सटीक योजना है
मतमतान्तरों फैली हो, मति मैली मिनखां री करें,
अकड़-पकड़ री आ मूंठी झकझोड़ । ( मा. म. पृ. ७७ )
राजस्थानी भाषा में मादा शेरनी के लिए 'बाघण' शब्द है, इसका एक प्रयोग देखें
पण भा तो बिरची बाघण बणी लुगाई । (मा. म. पू. ७७ ) अपने बालक की रक्षा के लिए, उसे पाने
के लिए स्त्री बाघण जैसी आक्रामक और भयंकर हो उठती है, इस स्थिति में स्त्री स्वभाव का व्यंजक 'बाण' शब्द से बढ़कर और कौन सा शब्द हो सकता है ।
'कूडी' भी ठेठ राजस्थानी शब्द है, लोकगाथाओं में भी प्रयुक्त हुआ है,
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