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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
सम्पन्न करने में अपना योगदान दिया। पंथ के प्रवर्तक आचार्य श्री भीखण जी से आचार्य श्री तुलसी तक साहित्य-सृजन की अजस्रधारा निरन्तर प्रवहमान है। पंथ के प्रथम आचार्य श्री भीखण जी और आचार्यश्री तुलसी की काव्यसाधना प्रबन्ध काव्यों के क्षेत्र में भी प्रतिफलित हुई है। आचार्यश्री भीखण जी कृत द्रौपदी रो बखाण, जंबूकुमार चरित, एवं सुदर्शन चरित (खंड काव्य), भरत चरित (महाकाव्य) तथा आचार्यश्री तुलसो कृत 'कालूयशोविलास' इस आदान की समीचीनकृतियाँ हैं। समीक्ष्य कृतियों में आगमिक कथाओं का पुनराख्यान और चरित गायन ही नहीं है अपितु दर्शन-आध्यात्म एवं लोक व्यवहार के विभिन्न सन्दर्भो का उत्कीर्णन इन कृतियों की निजणी निखाली विशेषता है, जो इन कृतियों को गरिमापूर्ण स्वरूप देता है। मानव जीवन तथा समाज एवं चिंतन तथा अनुभूति का सांगोपांग चित्रण जिन रचना में होता है वह जनमानस का कण्ठहार बनती है। आचार्यश्री भीखण तथा आचार्यश्री तुलसी के समस्त साहित्य-सागर में अनुभूति की वीचियाँ चिन्तन की अगाध जल राशि पर वर्तन करती देखी जा सकती हैं । आलोच्य प्रबन्ध काव्यों में जहाँ अनुभूति की विविधोन्मुखी दिशाएं एवं दार्शनिक व्युत्पत्तियाँ विद्यमान हैं, वहीं समाज में गहरी संसिक्ति भी विद्यमान है। एक ओर जहाँ इन कृतियों में आध्यात्मिक आह्लाद की लहरों का सृजन हुआ है, वही इनमें विद्यमान संवेदना एवं अभिव्यक्ति के स्तर इसे उच्चकोटि के साहित्य की श्रृंखला में स्थापित करते हैं। आलोच्य कृतियाँ त्यागी, तपरवी एवं समर्पित व्यक्तित्वों एवं उनसे जुड़े काल का सजीव बोध कराती हैं, वहीं जैन दर्शन के चिन्तन-व्यवहार में अवतरणा की जीवन्त गाथा प्रस्तुत करती हैं। यही इन कृतियों की सृजन-प्रेरणा का प्रस्थान बिन्दु है । इस दृष्टि से ये राजस्थानी को तेरापन्थ का विशिष्ट आदान भी है। इस क्रम में तेरापन्थ के राजस्थानी प्रबन्ध काव्य-कतियों का परिचयात्मक विवेचन समीचीन होगा। भरत चरित
___ 'भरत चरित' तेरापन्थ के प्रथम आचार्य भीखण जो द्वारा रचित है। राजस्थानी भाषा में रचित समीक्ष्य काव्य कृति की कथावस्तु का आधार ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से चयनित है तथा जैन समाज में चिर-परिचित है। ७४ ढालों में सुगुम्फित कथा 'जम्बूद्वीपपन्नति सूत्र' से चुनी गई है । महाकाव्य के परम्परागत स्वरूप एवं लक्षणों की पूर्ति यद्यपि यह कृति नहीं करती किन्तु उसमें वणित भरत के जीवन की जीवंत कथा लोक प्रख्यात कथानक पर आधारित है। ऋषभदेव बाहबलि तथा अन्य सौ भाईयों की सह कथाओं के साथ भरत की वीरतापूर्ण विजयों और चक्रवर्ती सम्राट् बनने की कथा का
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