Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan
Author(s): Devnarayan Sharma, Others
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 224
________________ तेरापन्थ का राजस्थानी प्रबन्ध-काव्य रेणु कण्ठी हो तनु संतापे अजिन रू अठी हो भट्टी व्यापे ।' 'कालयशोविलास' के माध्यम से कवि आचार्य श्री तुलसी ने ऐसे नरश्रेष्ठ व्यक्तित्व का चरितगान किया है जिनका जीवन वर्तमान समय (जिसमें छद्म चरित्र अधिक है) में मूल्यवान नैतिक, मर्यादित जीवन जीकर लोक मानस को सदैव प्रेरित करता रहेगा । कष्ट-सहिष्णुता और शारीरिक सुख के प्रति वैराग्य; करुणा तथा परोपकार; सबके प्रति मैत्री भाव, हिंसा का निषेध आदि वे गुण हैं जो भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति काव्य नायक को सिद्ध करते हैं। वर्तमान सन्दर्भो में यह अभिव्यक्ति कृति को महत् उद्देश्य का संवाहक घोषित करती है जो महाकाव्य की अंतिम कसौटी है। द्रोपदी रो बखाण काव्य रूप की दृष्टि से 'द्रोपदी रो बखाण' खंड काव्य है। 'ज्ञाता सूत्र' से चयनित कथानक समीक्ष्य कृति का रचनाधार रहा है। भीखणजी कृत 'द्रोपदी रो बखाण' की द्रोपदी महाभारत में वर्णित कथानकों से भिन्न जैन धर्म की आस्थाओं एवं लक्षणों की प्रतीक बनकर वर्णित हुई है। धर्म और नीति अर्थात् सत्वशील और नय भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण किम्वा अनिवार्य तत्व है । 'द्रोपदी रो बखाण' में भारतीय संस्कृति के इन सनातन जीवन मूल्यों का जीवंत रूपांकन हुआ है। ३३ ढालों में निबद्ध समीक्ष्य काव्य की कथा में यद्यपि प्रबन्धकाव्योचित गरिमा का भास विद्यमान है किन्तु खंड काव्य के तात्त्विक कलेवर के निर्वाह का अभाव इसमें दृष्टिगत होता है। कथानक में नाटकीय संधियों का अभाव है किन्तु कथानक लोक प्रख्यातता की अनिवार्य शर्त (जो खंड काव्य के लिए अनिवार्य नहीं है) इसमें आद्यांत फैली देखी जा सकती है। जीवन का एकांगी किम्वा उत्कर्षापकर्ष विहीन चित्रांकन इसको खंडकाव्य की दिशा में बढ़ाता है। नागश्री द्वारा अखाद्य तुम्बी शाक तपोधनो धर्म रुचि को देना, धर्मरुचि का चीटियों को मरते देख प्राणीरक्षार्थ अनिष्ठ को रोकने हेतु स्वयं शाक को खा लेना फलस्वरूप स्वर्गारोहण, नागश्री का सुकुमालिका के रूप में पुनर्जन्म, विवाह, पति द्वारा परित्यक्त होना, दीक्षा, तत्पश्चात् कठोर तपस्या और देह त्याग, पुनः जन्म, द्रोपदी के रूप में पाँच पांडवों से विवाह, नारद का तिरस्कार जनित प्रतिशोध, द्रोपदी अपहरण, युद्ध, द्रोपदी की वापसी, द्रोपदी की संयम-तपस्या और देह त्याग, पंच पांडवों की दीक्षा, वे सूत्र हैं जिनसे समीक्ष्य काव्य की कथा का ताना-बाना बुना गया है । अभिव्यंजना के स्तर पर सहजता और सरलता का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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