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तेरापंथी आस्था की धुन : "नन्दन-निकुञ्ज"
0 डॉ० नन्दलाल कल्ला
विगत तीन शताब्दियों से जैन धर्म सम्मत-मौलिक प्रतिस्थापनाओं से मण्डित तेरापन्थ का प्रणयन जिन क्रातिकारी परिस्थितियों में हुआ-वह स्पष्टतः राजमहलों की भौतिक स्थूलताओं में आपाद-मस्तक निमज्जित विलासी और अकर्मण्य सामन्तों के लिए नहीं था। दूसरी बात यह तेरापंथ उन लोगों के लिए भी प्रवर्तित नहीं था जो भगवावेशधारी केवल माला के बड़े-बड़े मनकों में ही विश्वास करते थे न कि मन के 'मनकों' को फेरने में । इसलिए हम कह सकते हैं कि तेरापंथ मूलतः जन-जन की भावना का पंथ था-लोक चेतना का पंथ था--- "सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय' की भावना का पंथ था। संभवतः इसी दृष्टि को ध्यान में रख कर तेरापंथ के आचार्यों की वाणी में ज्ञान का बोझ न होकर, सहज उद्गार देखा जा सकता है । इसीलिये इनकी वाणी में राजकीय उद्यान में खिलनेवाली फूलों की चटक-मटक नहीं वरन् जंगल में खिलनेवाले फूलों का अकृत्रिम सौरभ सम्पन्न सौंदर्य अनुभव किया जा सकता है । यहाँ पहाड़ी झरने के समान कल-कल नाद की ध्वनि सुंदरता है । इन आचार्यों ने आडम्बरों से सन्तप्त जन-मानस को अपनी गीतिकाओं की सहज व सरस शीतलता प्रदान करके अपूर्व आनंद प्रदान किया है । संगीत के तरल सौंदर्य की रसधारा में आकंठ निमग्न जन-जन की भावना झंकृत हो जाती है । तेरापंथ के आचार्यों ने कहीं स्तुति शैली, कहीं प्रबन्ध महाकाव्यात्मक शैली तो कहीं गीतों की योजना के माध्यम से जन चेतना को सहज रूप से चमत्कृत किया है । इन गीतों में आस्थाओं की बांसुरी गूज भरती है।
'अमृत सन्देश' प्रदायक एवम् त्रिताप पीड़ित सांसारिकों के लिये सात्त्विक 'सोमरस' का लहराता सिंधु तथा सम्प्रति विषमताओं, विडम्बनाओं विद्रूपताओं, विकृतियों, विसंगतियों की तीव्र तप्त भूमि पर लड़खड़ाते आज के 'मनु' की नूतन चेतना और श्रद्धा प्रदायक कृति का नाम---'नन्दन निकुंज' है। पथभ्रान्त, श्रान्त और क्लान्त, थकित और श्रमित, कर्मबोझिल तथा ऐषणाओं से भाराकान्त जन-मानस के लिए नंदन निकुंज आस्था का नखलिस्तान है।
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