Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan
Author(s): Devnarayan Sharma, Others
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 233
________________ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान 'मर्यादा - महोत्सव' के महत्व के प्रति आचार्य प्रवर की दृष्टि कहती है- यह कथन समसामयिक भारतीय परिवेश की व्यथा का संतोषजनक समाधान करने का आह्वान करता है - " शाश्वत मूल्य धर्म का जो वह कैसे घट सकता है ? धर्म नाम पर मानव-मानव कभी न बँट सकता है । आश्रय लेकर धर्म नाम का जहर नहीं फैलाएं || " तीसरा सोपान 'निर्वाण महोत्सव' समर्पित है, जो अधिकांशतः आचार्य भिक्षु के प्रति प्रणाम अंजली ही है। 'आचार्य उत्कीर्तना' में पूर्ववर्ती गुरु परम्परा की सश्रद्ध गीतिमय भाव प्रवण हृदय स्पर्शी प्रस्तुति है । 'साध्वी प्रमुख उत्कीर्तना' में महासती सरदारां, सती गुलाबां, साध्वी प्रमुखा श्री नौलांजी, महासती जेठांजी इत्यादि का पुण्यमय स्मरण है । शेष उत्कीर्तनाओं में मातृ-स्तवन और गुणोत्कीर्तना है । 'धर्म उत्कीर्तना' में आचार्य श्री की वह रचना है जो तेरापंथ के सिद्धांतों व अणुव्रत का भाष्य है - 'संयममय जीवन हो ।' २१८ सम्पूर्णत: ‘नन्दन निकुंज' के गीतों की रचना की गेय भूमि तीन प्रकार की है---अधिकांश गीतों की तर्ज लोक गीतों पर आधारित है, जिसे हृदयंगम व कंठस्थ करने में किसी भी श्रद्धालु को प्रयत्नज नहीं होना पड़ता, वे तो जन्मजात जन्मघुटी के रूप में उसे प्राप्त हुई हैं । कुछ गीत शास्त्रीय राग में विशेषतः मालकोश पर आधारित हैं । कुछ गीत प्रसिद्ध फिल्मी तर्ज पर निबद्ध किये गये हैं । सम्पूर्ण ग्रंथ भी भाषा में कहीं भी कृत्रिमता का बोझ, छंदों व अलंकारों का भार नहीं है । निष्कलुष गगन मण्डल में जगमगाते नक्षत्रों भी भांति भावनाओं की ऐसी समुज्ज्वल अभिव्यक्ति का रागमूलक सौन्दर्य 'नन्दन निकुंज' है, जिसकी प्रत्येक पंक्ति यही उद्घोष करती है "मैत्री भाव हमारा सबसे प्रतिदिन बढ़ता जाए, समता, सह-अस्तित्व, समन्वय नीति सफलता पाए । शुद्ध साध्य के लिए नियोजित मात्र Jain Education International शुद्ध साधन हो । संयममय जीवन हो । " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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