Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan
Author(s): Devnarayan Sharma, Others
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 222
________________ तेरापंथ का राजस्थानी प्रबन्ध-काव्य २०७ कालयशोविलास-- तेरापन्थ के साहित्यिक अवदान की महती शृंखला का द्वितीय पुष्प है महाकाव्य 'कालयशोविलास'। उत्कर्ष काल के उत्कृष्ट काव्यों में आचार्य तुलसी की प्रथम काव्य कृति 'कालयशोविलास' का महत्वपूर्ण स्थान है। राजस्थानी भाषा की अवरुद्ध धारा को योगदान देने वाला प्रस्तुत काव्य 'महाकाव्य' की श्रेणी में रखा जा सकता है । डा० ब्रजनारायण पुरोहित का यह कथन समीक्ष्य कृति की महत्ता एवं सामर्थ्य को स्पष्टतः रेखांकित करता है कि युग पुरुष कालूगणी के जीवन चरित्र पर आधारित यह कृति कवि आचार्यश्री तुलसी की सूक्ष्म पर्यवेक्षणा-शक्ति और रचना मेधा का जीवंत प्रमाण है। रचनाकार ने चतुर्थ उल्लास (कालूयशोविलास का कथा वितान 'षष्ठ उल्लास' में बुना गया है जो आठ सर्गों की शास्त्रीय लक्षण मान्यता को तोड़ता है किन्तु रचना में कथा की सुगुम्फितता और लोक प्रख्यात कथानक के लक्षण पूर्ति के कारण यह बेमानी है) में कृति की सृजन प्रेरणा स्पष्टतः घोषित की है-- सौभाग्याय शिवाय विघ्नविततेमेंदाय पंकच्छिदे, आनन्दहिताय विभ्रमशत-ध्वंसाय सौख्याय च । श्री श्री कालूयशोविलास विमलोल्लासस्तुरीयो उङकं सम्पन्नः सततं सतां गुणमता भूयाच्चिरं भूतये । स्वान्तः सुखाय में परान्तः सुखाय की यह यात्रा कालूयशोविलासकार को मानसकार तुलसी की स्वान्तः सुखाय रघुनाथ गाथा........... की भावना के समकक्ष ले जाती है। इस समीक्ष्य कृति के चरित नायक पंथ के अष्टम आचार्य कालगणी आदर्श गुणों से युक्त धीरोदात्त नायक हैं। कवि (जो काव्य नायक के अति निकट रहा है) ने ऐतिहासिकता का पूर्ण पालन करते हुए घटनाओं का यथार्थतः चित्रण युग-सन्दर्भो में किया है। कालूगणी के आंतरिक गुण वैशिष्ट्य और कवि आचार्यश्री तुलसी को काव्यक्षमता की एक बानगी द्रष्टव्य है गुर मघवा सुरगमन लख, कालू दिल सुकुमार, भारी विरह विखिन्न ज्यू, कृषि बल बिन जलधार । पलक-पलक प्रभु मुख वयण, स्मरण समीरण लाग, छलक छलक छलकण लग्यो, कालू हृदय तडाग । या मनड़ो लाग्यो रे चितड़ो लाग्यो रे खिण खिण सुमरू गुरु । थारो उपगार रे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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