Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan
Author(s): Devnarayan Sharma, Others
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ २०६ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान परहड़े सगा ने सेण, परहड़े संचियो धन हाथ रो बंधव क्रिया ने पूत, नहिं परहड़े धर्म जगन्नाथ रो इन्द्री विषय कषाय, र अभितर मोमिया बस करो मेटो तृष्णा लाय, सुमता रस चित्त में धरो। 'भरत चरित' चरित्र प्रधान काव्य है। यद्यपि कवि का कौशल अधिश : प्रसंगोदभावन में है तथापि चरित्र विश्लेषण द्वारा कथानक का विस्तार कथितरूप से अधिक हुआ है। यों कहा जाए कि 'भरत चरित' चरित्र प्रधान कथा सृष्टि है तो अतिशयोक्ति न होगी। भरत (प्रमुख पात्र) के साथ बाहुबलि, ऋषभदेव का भी चरित्रांकन हुआ है। चरित्रांकन का वैशिष्ट्य इसमें है कि यह प्रसंगानुकूल है किन्तु सीमा यह है कि सपाट बयानी जो सप्रयोजन है । सहज सम्प्रेषणीयता, महाकाव्योचित गरिमा का संस्पश नहीं कर पाती। शिल्प के स्तर पर भाषा सरल राजस्थानी है और यह बात कृति के पाठक की सोच और समझ से रचनाकार के सृजन अनुभवों को सहजता से एकाकार कराती है जो कवि श्री भीख ण का अभिप्रेत भी है। उदाहरणार्थ एक बानगी प्रस्तुत है -- पुन्न तो सुख छ संसारना, मोख लेखे सुख छ नांहि ज्यां मोख तणा ओलख्या, ते रीझे नहीं इण मांहि । या काम भोग सू करसी प्रीत, बाँधे कर्म रास ने जी ते होसी चिहू गति माहें फजीत, परया मोह फस में जी या काम भोग मोह कर्म रोग, ते पिण नहीं सासता जी तिण सू छोड़ दो कांम ने भोग, राखो धर्म आसता जी। वस्तुत: कवि का प्रयास शिल्प के चमत्कार के लिए क्रियाशील न होकर जैन सिद्धांत और युग-चिन्तन के सहज संप्रेषण के लिए रहा है। इसी कारण 'भरत चरित' महाकाव्य है। उन अर्थों में तो नहीं जिनका बखान साहित्य शास्त्र की परम्परागत मान्यताएं करती हैं, बल्कि लोक प्रख्यात कथानक, मूल्यपरक दार्शनिक चिन्तन की अन्विति और उदात्त चरित्र सृष्टि के कारण इसे महाकाव्य कहने में कोई विप्रतिपत्ति नहीं होनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244