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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
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मनोरंजन के साधन
धनिक लोग गगनचुम्बी सुन्दर महलों में निवास करते थे, जिसमें मन को तृप्ति देनेवाले हीरे, रत्नों आदि से जटित जालीदार खिड़कियाँ होती थी । बैठने के लिए आराम दायक सिंहासन होता था । बाजीगर बन्दर को नचा'कर लोगों के दिलों को खुश करते थे । तथा मनोरंजन के लिए राजा महलों में भी बन्दर रखते थे । एवं आमोद-प्रमोद के लिए सुन्दर उद्यान होते थे । ४
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धार्मिक भावनाएं -
प्रस्तुत ग्रन्थ मे साधन के विविध पहलुओं द्वारा धार्मिक भावनाओं का दिग्दर्शन कराया गया है
१. उपासना :- उपासना पद्धति भी लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार से की जाती थी । जैसे लौकिक में
(क) गणेश पूजा : निर्धन को बुद्धि और सिद्धि द्वारा ६ महीने तक गणेश पूजा करने पर प्रतिदिन मुहरों की प्राप्ति होने लगी । ५ आध्यात्मिक दृष्टि से जैसे— (ख) भगवान महावीर की उपासना :- भगवान् महावीर का पदार्पण राजगृह नगरी में होता है । राजा श्रेणिक विशाल परिकर के साथ जाकर भगवान् को वन्दन करता है तथा देशना सुनता हैं । भगवान् महावीर ने मुक्ति के ४ मार्ग दान, शील, तप और भावना का विस्तार से वर्णन किया है ।
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"म्हासी जाए दलित दान थी, शील थी दुर्गति रो नास ।
कर्मा रो नास छे तप थकी, भावनां सूं भवां रो विनास ।" एच्या मार्ग मुगत रा । "
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राजा श्रेणिक ने विशाल परिषद् में भगवान् महावीर से प्रश्न पूछा --- भगवन् ! आपके शासन का अन्तिम केवली कौन होगा ?
भगवान् ने राजा की जिज्ञासा का समाधान करते हुए जम्बूकुमार का उल्लेख किया । २८
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( राजेश्वर भावना )
२. व्रत :- भगवान् महावीर की वाणी सुनकर राजा श्रेणिक आदि -लोगों ने अपनी-अपनी क्षमता अनुसार व्रतों को स्वीकार किया कुछ स्थलों पर बारह व्रतधारी श्रावक-श्राविकाओं का भी उल्लेख मिलता है । 3° १. दान-दाता के उत्कृष्ट परिणाम, शुद्ध पदार्थ और सुपात्रत इन तीनों के योग से कर्म क्षय हो जाते हैं तथा दान से व्यक्ति तीर्थंकर गोत्र का भी बन्ध कर लेता है । 39
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