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________________ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान १८८ मनोरंजन के साधन धनिक लोग गगनचुम्बी सुन्दर महलों में निवास करते थे, जिसमें मन को तृप्ति देनेवाले हीरे, रत्नों आदि से जटित जालीदार खिड़कियाँ होती थी । बैठने के लिए आराम दायक सिंहासन होता था । बाजीगर बन्दर को नचा'कर लोगों के दिलों को खुश करते थे । तथा मनोरंजन के लिए राजा महलों में भी बन्दर रखते थे । एवं आमोद-प्रमोद के लिए सुन्दर उद्यान होते थे । ४ २ धार्मिक भावनाएं - प्रस्तुत ग्रन्थ मे साधन के विविध पहलुओं द्वारा धार्मिक भावनाओं का दिग्दर्शन कराया गया है १. उपासना :- उपासना पद्धति भी लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार से की जाती थी । जैसे लौकिक में (क) गणेश पूजा : निर्धन को बुद्धि और सिद्धि द्वारा ६ महीने तक गणेश पूजा करने पर प्रतिदिन मुहरों की प्राप्ति होने लगी । ५ आध्यात्मिक दृष्टि से जैसे— (ख) भगवान महावीर की उपासना :- भगवान् महावीर का पदार्पण राजगृह नगरी में होता है । राजा श्रेणिक विशाल परिकर के साथ जाकर भगवान् को वन्दन करता है तथा देशना सुनता हैं । भगवान् महावीर ने मुक्ति के ४ मार्ग दान, शील, तप और भावना का विस्तार से वर्णन किया है । २६ "म्हासी जाए दलित दान थी, शील थी दुर्गति रो नास । कर्मा रो नास छे तप थकी, भावनां सूं भवां रो विनास ।" एच्या मार्ग मुगत रा । " . राजा श्रेणिक ने विशाल परिषद् में भगवान् महावीर से प्रश्न पूछा --- भगवन् ! आपके शासन का अन्तिम केवली कौन होगा ? भगवान् ने राजा की जिज्ञासा का समाधान करते हुए जम्बूकुमार का उल्लेख किया । २८ Jain Education International ( राजेश्वर भावना ) २. व्रत :- भगवान् महावीर की वाणी सुनकर राजा श्रेणिक आदि -लोगों ने अपनी-अपनी क्षमता अनुसार व्रतों को स्वीकार किया कुछ स्थलों पर बारह व्रतधारी श्रावक-श्राविकाओं का भी उल्लेख मिलता है । 3° १. दान-दाता के उत्कृष्ट परिणाम, शुद्ध पदार्थ और सुपात्रत इन तीनों के योग से कर्म क्षय हो जाते हैं तथा दान से व्यक्ति तीर्थंकर गोत्र का भी बन्ध कर लेता है । 39 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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