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आचार्य भिक्षुकृत जम्बूचरित का सांस्कृतिक अध्ययन
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२. शील :-शील को सब व्रतों में श्रेष्ठ बताया गया है। ब्रह्मचारी की विशेषताओं को उजागर करते हुए कहा गया है
"च्यारूं जात रो देवता, कर ब्रह्मचारी नां गुणग्राम । जिण नव कोटि शील आदरयो, तिण ने नित-नित बांदे नाम ।"३२ ३. तप :--तप की उत्कृष्टता को बताते हुए कहा है
"कर्म कटे तपसा कियां, तपसा छे मोटो निधान ।
कोड भरां रा कर्म संचिया, ते कट जाए तप सू आसान।" तप के बारह भेदों का भी संकेत मिलता है।
४. भावना :--भावना के द्वारा ही व्यक्ति संसाररूपी समुद्र का पार पा सकता है। कहा भी है
"भावना सुध भाया थंका, तो थोड़ा में कटे कर्म जाल । अनंत भव करणा छेदने, मुगत जाए तत्काल ।
राजेश्वर भावना ॥४ ५. साधु जीवन के कष्ट :- धरती पर शयन, केशलुञ्चन, सर्दीगर्मी सहन करना तथा २२ परीषहों को सहना, घर-घर से भिक्षा लाना, नंगे पांव चलना आदि कष्टों का ११ वीं ढाल में विस्तार से वर्णन
६. संयम :-सुधर्मा स्वामी के पास जम्बू आदि एक सौ अठ्ठावीस व्यक्तियों ने संयम ग्रहण किया। जम्बू स्वामी को अनेक उपमाओं से उपमित किया गया है । ४६ वीं ढाल में उनके संयमी जीवन के गुणों का उत्कृष्ट वर्णन किया गया है ----
"गुण तो त्यांने छे अतिघणा, समुद्र जेम अथाय हो ।
कोडजिभ्या करे वर्णवे, तो ही पूरा कह्या न जाय हो ।।२६ दार्शनिक दृष्टियाँ
१. पुनर्जन्म :-राजा श्रेणिक ने भगवान् महावीर से प्रश्न कियाभगवन् ! जम्बूकुमार कौन होगा ?
भगवान् ने राजा श्रेणिक के प्रश्न का उत्तर देते हुए जम्बूकुमार के पिछले चार भवों का उल्लेख किया । प्रस्तुत ग्रंथ में और भी अनेक जगह पुनर्जन्म की चर्चा मिलती है ।
२. कर्मवाद :-आचार्य भिक्षु ने इस ग्रन्थ में जगह-जगह कर्मवाद का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है, जैसे
“एक पाणी रा बिंदू मझे, मात-पिता असंख्याता होय । त्यांरो नित गटको करूं, त्यां साह्यों क्यू नहीं जोय ॥१९
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