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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
पंचम आरा-अवसणिणी और पांच अणुव्रत
उत्सणिणी काल का एक विभाग पारणा-उपवास आदि तपस्या का एंचम गति
समापन । पंचम गुण ठाणी
पावस-चातुर्मास पंच महाव्रत
पितवाणी पंचाचारी
पुण्यबन्ध----शुभकर्म का बन्धन । पंचेन्द्रिय प्राणी
पुरुषार्थवाद पंडितमरण, पंडितमृति-संयम- पूंजनी-रजोहरणी पूर्वक समाधि-मरण
पूज-आचार्य पक्खी- पक्ष का वह दिन जब पाक्षिक पूर्ण अहिंसा
प्रतिक्रमण किया जाताहै। पौद्गलिक सुख पछेवड़ी --साधु-साध्वियों का उत्तरीय प्रणिधि-निर्मल चेतना के समय होने वस्त्र ।
वाली स्थिरता। पजुवास-उपासना।
प्रतिक्रमण
प्रत्यनीक पडिक्कमण-जैन-मुनियों की आलो
प्रदक्षिणा चना-विधि ।
प्रमार्जन पडिलेहण—साधुओं के निश्रित वस्त्र, प्रवचन
पात्र आदि का निरीक्षण करना। प्रवृत्ति-चित्त की निर्मलता का पद-आराधी
औत्सुक्य-रहित आचरण । पद-निरपेक्ष --निराशंसी
प्राणायाम परखदा-परिषद्
प्रातिभ प्रज्ञान--प्रतिभा की विशेष परतख-प्रत्यक्ष
स्फुरणा; मतिज्ञान का एक परमार्थ
प्रकार। परम समाधि
प्रासुक एषणीय परिपाक
प्रेक्षाध्यान परीनिर्वाण
प्रेक्षा प्रेरित । परीषह-संयम मार्ग में समागत बारह व्रत-जैन श्रावक की आचारकष्ट ।
संहिता। पर्यायाथिक
बारा-मृत्यु के बाद बारहवें दिन पर्युपासना
होने वाली लौकिक विधि । पर्यु (यू) षण पर्व-जैनधर्म का बारी-सामूहिक कार्यों का क्रम । अष्टाह्निक पर्व ।
बेहरणो-भिक्षा लेना
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