________________
तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
वस्तु में राजप्रासाद स्थापत्य, मंडनशिल्प, उदात्तीकरण एवं परामनोवैज्ञानिक शिल्प आदि के प्रयोग से इस महाकाव्य में नाटक की तरह रोमांचकता एवं उपन्यास की तरह कौतुहल-वृत्ति आद्यंत बनी रहती है ।। चरित्रचित्रण
महाकवि भिक्षु ने अनेक सशक्त एवं प्रभावक पात्रों का चित्रण किया है । पुरुष पात्रों में मुख्यत: राजा धात्रीवाहन, ब्राह्मण-कपिल, सेठ सुदर्शन और मुनि धर्मघोषादि मुख्य हैं। नारी पात्रों में सेठ-भार्या-मनोरमा, कपिला, रानी-अभया, धात्री और दवदन्ती वेश्यादि हैं। इनमें सेठ सुदर्शन, मनोरमा और धर्मघोष मुनि को छोड़कर शेष विपक्षी चरित्र (खलनायक) में परिगणित हैं। सेठ सुदर्शन
रत्नत्रय में प्रतिष्ठित एवं सार्थक गुणों से विभूषित चरित्र का नाम है सेठ सुदर्शन । उसके बाह्य-रूप संहनन तो उत्कृष्ट थे ही अभ्यन्तर शीलचारुता भी अवर्णनीय थी। धर्म निरत श्रावक, निजकुटुम्ब-मेढीभूत-सेठ वृषभदास और 'रूप गुणे श्रीकार' भार्या जिनमती से रूप-लक्षण-गुण-सम्पन्न सुकुमाल-पुत्र का जन्म हुआ। वह व्यञ्जनादि से युक्त था ।"
वह धीरे-धीरे जवानी के रमणीय एवं लुभावने रूप से परिपूर्ण होता है, साथ ही शील-सुषमा में पूर्ण प्रतिष्ठा को भी प्राप्त करता है। जिसके गुण को सुनकर कायर भी शूर-वीर हो जाते हैं :---
कायर सुण हुवै सूरमा, सूरा पिण होय अति ही अडोल । सुदर्शन गुण सांभली, पाले शील अमोल ॥ सुदर्शन शील पालने, गयो पंचमी गति प्रधान ॥१२
बाल्यकाल के बाद वह श्रावक के रूप में सामने आता है । परीषहों के उपस्थित होने के बावजूद वह वैसे ही स्थिर रहता है जैसे “फोंजा में पील सलील" ।
सेठ दृढ़धर्मी और दृढ़वती था। मेरु, पृथ्वी आदि चंचल हो सकते हैं लेकिन सेठ स्थिर और अडोल था---
दृढ़धर्मी दृढ़आत्मा लीधा ने न मुंके रे ॥
पीण सेठ चले नहीं धर्म थी, प्रिय धर्मी छे पुछोरे ।।१४
इसके अतिरिक्त मेठ सुदर्शन ध्यान-निरत१५, अजेय, सत्यव्रती१६, ब्रह्मचारी१७, नारी के प्रति मातृभाव, उत्तमप्राणी, बडवीर सेठ, उदारचरित्र, साधुभक्त आदि रूपों में दृग्गोचर होता है । मनोरमा
सेठ की भार्या मनोरमा युवती, शीलवंती एवं गुण-प्रतिष्ठिता नारी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org