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आचार्य भिक्ष की साहित्य साधना
१३५ व्यक्ति का दृष्टान्त उल्लिखित किया है । अर्थगाम्भीर्य इस ढाल का वैशिष्ट्य
___चतुर्थ ढाल में एकेन्द्रिय जीवों की सुखद तथा दुःखद अनुभूतियों का विश्लेषण है।
पाँचवी ढाल में मनुष्य को चार भागों में विभक्त किया है। रुपक की भाषा में बोधगम्य बनाने के लिए मोम, लाख, काष्ठ और मिट्टी के गोलों से उसे उपमित किया गया है। प्रस्तुत रचना में मनुष्य की मानसिकता का मार्मिक चित्र प्रस्तुत है।
इस कृति में कुल ७ दोहे और १२४ गाथाएं हैं । रचनाकाल तथा स्थान विशेष का संकेत उपलब्ध नहीं है । ३५. अविनीत रास
धर्म का मूल है विनय । इस कृति में अविनीत के स्वभाव का गहरा विश्लेषण है। महत्वाकांक्षी और अभिनिवेशों से घिरा व्यक्ति किस प्रकार अपनी सीमाएं लांघ देता है। इसका साक्षात् दिग्दर्शन है । विनय और अविनय के संदर्भ में स्पष्ट तथा क्रान्तिकारी विचार प्रस्तुत कृति में उपलब्ध
इस संग्रह में १ दोहा और ४४३ गाथाएं संग्रहीत है।
पद्य साहित्य की गहनतम कृतियाँ तात्त्विक और सैद्धान्तिक विषयों में गुम्फित हैं । उपर्युक्त कृतियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आचार्य भिक्षु का शास्त्रीय ज्ञान गंभीर था। आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन कर क्षीर नीर विवेक उनकी प्रतिभा की विलक्षणता थी। सूक्ष्मतम तत्त्व निरूपण में जिस शैली को माध्यम बनाया है उसमें गाम्भीर्य के साथ-साथ सहज बुद्धिगम्यता है ।
आचार्य भिक्षु एक विशिष्ट मनोवैज्ञानिक थे । व्यक्ति के मनोभावों का विश्लेषण जिस मुक्तता एवं पटुता से किया है, मुग्ध करने वाला है। स्वामीजी सहज कवि और तत्त्वज्ञानी थे । बहुश्रुत होने के साथ-साथ प्रखर चिन्तक थे। तीव्र आलोचक, कठोर समीक्षक, महान् विचारक तथा निर्भीक और स्पष्ट वक्ता थे।
आचार्य भिक्षु के पद्य साहित्य का एक खंड है आख्यानों और कथाओं का।
आगमों में वर्णित आख्यान संदर्भो को सहज-सुबोध भाषा में तथा विविध राग-रागनियों में आबद्ध कर सरस और मनोहारी बना दिया है ।
आचार्य भिक्षु ने आख्यान शृखला में जिन-जिन नायकों का चरित्रचित्रण किया है उनमें अदभूत स्वाभाविकता और उत्कृष्टता का दर्शन होता
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