Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan
Author(s): Devnarayan Sharma, Others
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 193
________________ १७८ "सुखदाई सहु गण भणी, खेतसी जी गुणखांन । भक्खू ऋष पासे भला, पके मते परधांन ॥ X X प्रकृति विनय गुण कर प्रवर, सतजुग सरिसा संत । सतजुग नांम सुहांमणो, मोटा मुनी महन्त । तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान जयाचार्य ने आचार्य भिक्खू को शासनाधीश के रूप में स्वीकार किया है । उस सम्बन्ध में वे लिखते हैं " शासन नाथ ज्यूं थया भिक्षु स्वाम, दान दया रूड़ी रीत दीपाय, जीव घणा रा थे सार्या जी काम । पंचमे आरे प्रगट्या मुनिराय || २ आचार्य भिक्खू को महानतम् सन्त मानते हुए उनके स्मरण की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए जयाचार्य लिखते हैं " स्वामी भिखन जी सुखकारी रे, त्यांरौ जाप जपो नर नारी, उत्तम ज्ञान क्रिया गुणधारी रे । X X X समरण कीधां बाध संपति, पामै सुख भरपूर । जय ब्रह्म ेन्द्र अच्युत सुख कारण, दुर्गति होवें दूर ||' 113 अपने काव्य नायक आचार्य भिक्खू को अलौकिक व्यक्ति के रूप में जयाचार्य ने प्रस्तुत किया है । उसके साथ अपना जीवनाधार भी स्वीकार किया है । स्वामी भिक्खू के प्रति यहाँ जयाचार्य का दास्य भाव प्रकट हुआ है इसी कारण भिक्खू को सर्वस्व माना है और उनके निरंतर स्मरण पर जोर दिया है— Jain Education International "म्हारे तो मन में स्वामी बसिया, अहो निशि ध्याऊँ ध्यान जी म्हारै । लीजै नित्य प्रति नाम जी, म्हारै समरूं आठू याम जी ।"" आचार्य भिक्खू का यह निरन्तर स्मरण इस तथ्य को सिद्ध करता है कि जयाचार्य की कीर्ति-गाथा के शीर्ष पुण्य आचार्य भिक्खू ही हैं । 'भारीमाल गणि गुण वर्णन' में गणि भारीमाल के जीवर वर्णन के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व वैशिष्ट्य को भी जयाचार्य ने प्रस्तुत किया है और सन्त श्रृंखला में उनके शिशिष्ट स्थान को परिलक्षित किया हैगुण छै भारी, त्या नै ओपमा अधिकी आई । "भारीमालजी में For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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