________________
१८४
तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
निर्वाह किया है। इस तथ्य को साध्वी प्रमुखाजी ने डालिम चरित्र में इस प्रकार स्वीकार किया है- "दुर्बलता की अभिव्यक्ति से व्यक्तित्व खंडित नहीं होता, भविष्य में संभावित देवीकरण की कल्पना का निरसन होता है। इस विषय में जैन मागम बहुत स्पष्ट रहे हैं । वहाँ जैन साहित्य के बहुचर्चित व्यक्तित्वों के दुर्बल पक्ष को भी छिपाने का प्रयत्न नहीं किया गया है।"
तेरापंथ के इन महान् रचनाकारों ने अपनी रचनाधर्मिता से केवल संघ-सेवा का ही कर्तव्य निर्वहन नहीं किया है, बल्कि आदर्श पात्रों और चरित्रों को जनसामान्य के शिक्षणार्थ प्रस्तुत किया है। संदर्भ १. अमरगाथा, पृ० ९
१७. वही, १८ २. कीर्तिगाथा, ४
१८. वही, ४२ ३. वही, ८
१९. वही, ४६ ४. वही, २०
२०. वही, ५३ ५. वही, ४०
२१. कालूयशोविलास, ३१५ ६. वही, ४३
२२. वही, ३५० ७. वही, ४५
२३. वही, ८. वही, ५१
२४. माणकमहिमा-सम्पादकीय से ९. वही, ८५
२५. माणकमहिमा, ३३ १०. शासनविलास
२६. वही, ५१ ११. कीर्तिगाथा, २९९
२७. वही, ८८ १२. वही, २९१
२८. वही, ८९ १३. वही, २९९
२९. डालिम चरित्र, ३५ १४. वही, ३०८
३०. वही, १५० १५. वही, भूमिका
३१. मगनचरित्र १६. कालूयशोविलास, १२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org