Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan
Author(s): Devnarayan Sharma, Others
Publisher: Jain Vishva Bharati
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तेरापंथ के राजस्थानी काव्यों में चारित्रिक संयोजन
१८३
"श्री डालिम री देह में, अतिशय अमल अनेक । सर्वोत्कृष्ट विशेषता, मिनख परख री एक ॥
प्रस्तर रतन परीक्षका, जग में मिलै हजार ।
पर नर रत्न परीक्षका, मुश्किल स्यूं दो च्यार ।''3°
तेरापंथ के मंत्री मुनिमगन जी का चरित्र गान आचार्य श्री ने किया है। यह जीवन चरित्र भी यथार्थ का पर्याय ही है, जैसा कि आचार्य श्री ने स्वयं लिखा है-"ज्यों-ज्यों लेखन का क्रम आगे बढ़ा, मेरा मन बढ़ता गया, मैं समझता हूँ मैंने किसी प्रकार की अतिशयोक्ति या अर्थवाद का सहारा न लेकर एक यथार्थ को अभिव्यक्ति दी है।"३१
आचार्य श्री ने मुनि मगन के चरित्र-चित्रण में भी घटनाओं को ही आधार बनाया है । आचार्यत्व से भिन्न उनका चरित्र-चित्रण हुआ है, लेकिन कहीं-कहीं संघ संचालन में उनकी प्रतिभा की बहुत प्रशंसा की गयी है और यही उनके चरित्र का प्रबल पक्ष भी रहा, जिसे आचार्य श्री ने प्रस्तुत किया
माणक डालिम संधि काल में, कालू मगन महान् । बागडोर कर थामे रखी, जो शासन री शान ॥ डालिम सरिखाँ री गति परखी, रीझ-खीझ उद्दाम । कसणी छेद ताप ताड़ण स्यूं, सुवरण न हुवै श्याम ।।
शीघ्र नीति निर्णायक शक्ति, निर्णय दृढ़ता नेक । इधर-उधर न दिमाग डोलतो, एक राखतो टेक ।। भोले बालक की सी भक्ति निश्छल विनय निकाम । बद्धाजंलि ऊंचे स्वर करतो, गुरु वन्दन गुणग्राम ॥"
(मगन-१२८) संध के प्रगतिवादी विचारों के मुनि मगन प्रचारक एवं संवाहक रहे, जिसके बारे में भी आचार्यश्री ने लिखा हैं --
"नव जागति में सदा सहायक, कभी न खींच्यो पांव । परिवर्तन है, प्रगति सूचना मैं मंत्री रा भाव ।" (मगन-१३४)
चारित्रिक संयोजन की दृष्टि से जिन-जिन काव्यों का अध्ययन किया जा सका उससे एक तथ्य अवश्य ही उभर कर सामने आया है और वह यह कि इस प्रकार की रचनाओं में पात्रों को सहज रूप में उभारा गया है, उन्हें मानवीय धरातल पर ही रखा है। मानव मन की जो-जो चेष्टाएं-अपेक्षाएं होती हैं और होनी चाहिये यदि इन पात्रों में दिखी हैं तो काव्यकारों ने उन्हें विस्मृत नहीं किया है, बल्कि उन्हें भी अनावृत कर निरपेक्ष रचनाधर्म का
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