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तेरापंथ के राजस्थानी काव्यों में चारित्रिक संयोजन
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जिम सर में कमल सोभै छै, तिम सोभै साधामाई ₹ । '
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वले इन्द्र सोभै देवता में, तिम साधां में मुणिदो ।"" जयाचार्य भारी मालजी की महानताओं के निर्मल चित्त का परिचय भी देते हैं और एक ही को पिरोते हुए लिखते हैं
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" सोम प्रकृति चित शांत, सुवनीत घणा जसवंत । वचन दृढ़ विरुद विशाल ॥ ६
वर्णन के साथ-साथ उनके पंक्ति में उनकी विशिष्टताओं
'रायचंद गणिगुण वर्णन' में तृतीय आचार्य के रूप में उनका वर्णन करते हुए जयाचार्य द्वारा लिखा गया है
"तीजे पाट भिक्षु रे प्रतपो, शरणागत सुखकार । वीर जिणंद तणी पर हिवड़ां कर रह्या जगत् उद्धार || "
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रायचन्द गणि को ऋषिराय भी कहा गया है । एक ढाल में उनके गुणों का पारिभाषिक वर्णन किया गया है—
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'दखिल' दुख दाहण अघ दली जी, रखिल ऋषि बाल ब्रह्मचार | अखिल आचार आराधवा जी, सकल गण स्वाम शृंगार ॥ आचार्य वर्णन के साथ-साथ सन्तों की महिमा का गान जयाचार्य ने किया है। मुनि भारमल की महत्ता का वर्णन सेना में सेनापति के समान किया है
" सेन्यापति सेन्या मांहे सोभतो, तीन खंड में वासुदेव जांण । चक्रवत छ: खण्ड मांहे सोभतो, ज्यू साधां माहे वरवांण ।। "" इस सन्त वर्णन में संक्षिप्तता महत्वपूर्ण रही है जहाँ एक ही छन्द में उनका पूर्ण परिचय देने का प्रयास किया गया है ।
'शासन विलास' में आपने गद्य रूप भी सन्त वर्णन किया है । जैसे"श्री जी दुवारे भोपोसाह, तेहने पुत्र खेतसी, प्रकृति चोखी ।" १०
सतीगुण वर्णन में जयाचार्य ने साध्वियों का वर्णन किया है । यहाँ भी संक्षिप्तता प्रमुख विशिष्टता कही जा सकती है। साध्वी आसूजी का वर्णन करते हुए आपने लिखा है
" सती घणा जीवां ने समझाय नै, अदरायाश्रावक व्रत उदार । केइकां नै सुलभ बोधी किया, स्याणी सुगणी गण में सुखकार ||"" साध्वियों के वर्णन में उनके गृहत्याग को विशिष्ट रूप में उल्लिखित किया गया है । साध्वी रूपांजी, हस्तूजी ( बड़ा ) और आसूजी के वर्णन में इस प्रकार के उल्लेख मिलते हैं
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