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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
के ऊंनै म्है ओली-ओली करनै जरूर पढ़। चौपन्निये रै आमुख मांय लिखियोडो है—'तेरापंथ की संक्षिप्त झलक कागज पर उतर गई । सहज सरल राग, संस्कृत प्रधान राजस्थानी भाषा और रचनाशैली में प्रवाह । इतिहास, सिद्धान्त और कुछ संस्मरणों का सम्मिश्रण'--सचमुच आ बात सही लागै । 'तेरापन्थ प्रबोध' री ५७ वी ओली कहवै
'अरे हेमड़ा ! दीक्षा लेसी के, तू म्हारै मर्या पर्छ
या जीते जी'-बोल्या भिक्षु--'कह दै थारै जिसीजचै ।' फेरूं १०३ वीं ओली
_ 'जनम लियो प्हाड़ी भूमी पर ? शेरगुफा में ही जनमैं'
सिंहवृत्ति स्यू संयम पाल्यो मस्त रह्या अपणे पनमें ।' अर १२२ वी ओली देखो
'कामधेनु है विश्व भारती, शिक्षण संस्था वरदाई
युग री मांग समण श्रेणी है, आ पुरखां री पुण्याई ।'
--इण ओल्या मांय सहज सरल राग, संस्कृत प्रधान राजस्थानी भासा अर रचना शैली में प्रवाह-तीनों दीसै । देख-पढनै म्हारो हाव बढ्यो अर थोड़ो बोऽत तेरापंथ रो राजस्थानी साहित्य पिंण देखियो तो घणकरी बातां समझ पड़ी।
की दिनां पैली म्हारा साथी रह्या अर पछै-राजस्थान विश्वविद्यालय मांय म्हारा अध्यापक रह्या आदरजोग जयनारायण आसोपा री संपादन करियोड़ी पोथी--'क्लचुरल हेरीटेज ऑफ जयपुर' देखी। उण मांय छपियो. एक लेख में लिखिज्यो ह कै पटोदी रो दिगम्बर जैन मंदिर अर तेरापंथी बड़ो मंदिर-दोन्यू जयपुर शहर रै निर्माण साथै हीज बण्यां, जिण माय उण वेला रै लेखक भाई रायमल रै शब्दां मं-"और यहां दस बारह लेखक सदैव सासते जिनवाणी लिखते हैं वा सोधते हैं और एक ब्राह्मण महेनदार चाकर राख्यो है सो बीस तीस लड़के बालकन कून्याय व्याकरण, गणितशास्त्र पढ़ाते हैं और सौ पचास भाई व बायां चर्चा व्याकरण का अध्ययन करै हैं।' भाई रायमल आगै लिखै--- 'अर जैन लोग समूह वस है। दरबार के मुतसदी जैनी है और साहूकार लोग सबै जैनी है। जधपि और भी है पर गौणता रूप है मुख्यता नाही। छह सात व आठ वा दस हजार जैनी महाजना का घर पाइदै है। ऐसा जैनी लोगों का समूह और नग्र विषै नाही औईइ के देश विष सर्वत्र मुख्यपणे श्रावती लोग बसे है ताते एह नम्र व देश बहाते निर्मल पवित्र है। तातै धर्मात्मा पुरुष बसने का स्थान है। अबार तो ए साक्षात् धर्मपुरी है।'
उठ रो ही, दूजो कवि बखतराम संवत् १८१८, १८२४ अर १८२६ रै बीचाल जैन अर शैवां रै बीच हुयै संघर्ष रो व्यौरो देवै---
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