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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
है। प्रस्तुत आख्यान माला में निम्नलिखित कथानकों का प्रस्तुतिकरण है१. गोशालक री चौपाई
११. थावच्चापुतर रो बखाण २. चेडाकोणक री सिंध
१२. द्रौपदी रो बखाण ३. तामली तापस रो बखाण १३. तेतली प्रधान रो बखाण ४. उदाई राजा रो बखाण १४. जिनरिख जिनपाल रो बखाण ५. सकडाल पुत्र रो बखाण १५. नंद मणिहार रो बखाण ६. सुबाहु कुमार का बखाण १६. पुंडरीक-कुंडरीक रो बखाण ७. मृगा लोढ़ा रो बखाण १७. सुदर्शनचरित ८. उंबरदत्त रो बखाण १८. सास-बहू रो बखाण ९. धना अणगार रो बखाण १९. जम्बूकुमारचरित १०. मल्लिनाथ रो बखाण २०. भरत चरित
___अस्तु आचार्य भिक्षुकृत व्याख्यान-शृंखला अत्यन्त रसप्रद और मौलिक है। आख्यानों के माध्यम से जो ऐतिहासिक, तात्त्विक, सैद्धांतिक, सामाजिक, भौगोलिक और आध्यात्मिक दिशा-निर्देश हैं वास्तविकता व स्वाभाविकता से जुड़कर वे जीवन के हर मोड़ को उजागर करने वाले हैं । स्थान-स्थान पर स्वामीजी की काव्य-चेतना विविध रसों में मुखरित हुई है। साहित्यिक प्रतिभा का ज्वलंत उदाहरण है, प्रस्तुत ग्रन्थ । आचार्य भिक्षु नैसर्गिक प्रतिभा संपन्न सहज कवि थे। उन्होंने अपनी कृतियों में जिस सहजता और सरलता से विषयवस्तु का प्रतिपादन किया है, हर इन्सान के लिए सहज एवं बोधगम्य
आचार्य भिक्षु एक कुशल प्रशासक थे । उन्होंने जिस आचार-संहिता का निर्माण किया उसमें तनिक सी शिथिलता भी उन्हें सह्य नहीं थी। अनेक ऐसे प्रसंग हैं जहाँ आचार्य भिक्षु ने सामान्य गलती पर भी कितनी कठोरता की। संघ में आचार शैथिल्य को उन्होंने कभी स्थान नहीं दिया।
आचार्य भिक्षु के युग का प्रसंग है-साध्वी मेणांजी ने आचार विषयक कुछ गलतियाँ की । ज्यों ही आचार्य भिक्षु परिस्थिति से अवगत हुए, तत्काल कठोर अनुशासनात्मक कार्यवाई की। संघ की पवित्रता अक्षुण्ण रखने के लिए प्रतिकारात्मक एक पत्र प्रेषित किया। पत्र के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं
___ आर्या मैणांजी, धन्नांजी, फूलांजी, गुमानांजी गोगुंदा माहे रहे तो वैशाख सुध १५ पछ चोपड़ी रोटी नै जाबक सूखड़ी वैहरण रा त्याग छ । मारगिया रै आठ दिन टाल नै नवमें दिन जाणो, एक रोटी तथा एक रोटी रो बारदानो (सामग्री) बहरणो पिण इधको न वैरणो । कदा पाणी री भीड़ पडे तो दूजे पांतरे जाणो। पाणी धोवल ल्यावणो पिण बीजो कांई न ल्यावणो।
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