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आचार्य भिक्षु की साहित्य साधना
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करते हुए स्वयं आचार्य भिक्षु ने कहा है--
"जोगी जोग सेठे रहे भोगी तेज विकार" ४. निन्वरास---
___ अपने युग में आचार्य भिक्षु को विपक्षी लोग निह्नव कहते थे। वास्तव में निह्नव किसे कहते हैं ? इस प्रश्न को उत्तरित किया गया है इस कृति में । आचार्य भिक्षु की धारणा के अनुसार निह्रव वह है जिसकी आस्था निर्ग्रन्थ धर्म के विपरीत है, जिसके आचार और तत्त्व प्ररूपणा में भी अन्तर है। वास्तव में यह कृति तात्कालिक मिथ्या अभिनिवेशों, क्रियाकलापों पर गहरी चोट करती है। ५. गणधर सिखावणी
इस कृति में आचार्य भिक्षु ने मनुष्य जीवन की अस्थिरता को अनेक रूपकों के माध्यम से प्रस्तुत किया है । जैसे :
"अथिर परपोटो पाणी तणों, अथिर झालर रो झिणकारो। त्यूं अथिर आऊरवो मिनष रो, जांणे बिजली तणो चमत्कारो ॥"
जीवन की अवास्तविकता प्रदर्शित कर प्रतिक्षण जागरूक रहने का संकेत किया है। “णाणागमो मच्चु मुहस्स अत्थि' इस आगम वाक्य का रहस्य सरल और सुबोध भाषा में अभिव्यक्त कर अध्यात्म के प्रति रुझान पैदा करने का प्रयत्न किया है। कृति का रचनाकाल वि० सं० १८४३ तथा स्थान केलवा है। ३६ गाथाओं में निबद्ध दो ढालों का संग्रह अपने आप में विलक्षण है ऐसा प्रतीत होता है। ६. कालवादी री चौपाई
__ अाचार्य भिक्षु का युग अनेक मत-मतान्तरों का युग था । उनमें कालवादी नामक एक विशिष्ट मत था। उनकी मान्यता में समय (काल) को ही सर्वाधिक महत्त्व दिया था। इस कृति में आचार्य भिक्षु ने कालवादियों की मान्यता का खंडन कर वास्तविकता पर गहरा प्रकाश डाला है। दार्शनिक ग्रन्थों में इस कृति का अपना वैशिष्ट्य है। इसमें कुल ६ ढालें, ३६ दोहे और २४६ गाथाएं हैं । दार्शनिक तथ्यों के साथ-साथ गूढ़ तात्त्विक रहस्य भी इस कृति में उद्घाटित किये गये हैं। ७. इंद्रियवादी री चौपाई
अध्यात्म जगत में कर्मवाद का प्रमुख स्थान है। कर्मवाद के गंभीर अध्ययन का अर्थ है अध्यात्म की गहराइयों में जाने का सघन प्रयत्न । जो ऐसा नहीं करते, वे अध्यात्म का रहस्य उद्घाटित नहीं कर पाते ।
अध्यात्म चेतना का विकास कर्मों के क्रमिक विलय पर आधारित है।
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