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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
इसकी रचना संवत् १८३५ माघ सुदी ४ बुधवार के दिन की गई, ऐसा उल्लेख प्राप्त है। २६. सूंस भंगावण रा फल री ढाल
__व्यक्ति विवेक-जागरण के बाद अकरणीय के द्वार बन्द कर देता है, अन्तःप्रेरणा अथवा अप्रिय की आशंका से वह कई कार्यों के लिए संकल्पित होता है, लेकिन कभी-कभी उसके संकल्प की गांठ ढीली हो जाती है । स्वीकृत संकल्प को तोड़ना महान् पाप है। गिरते हुए व्यक्ति को पुनः कैसे संभाला जाए, कैसे उसे उसके आदर्शों पर स्थिर किया जाए आदि-आदि पहलुओं पर गंभीरता से विवेचन है प्रस्तुत रचना में।
इस ढाल में ५ दोहे और ! ७ गाथाएं है । सम्वत् १८५४ चैत्र शुक्ला १३ बुधवार के दिन पादु ग्राम में इसकी रचना की गई। २७. सांमधर्मी सांमद्रोही की ढाल
इस रचना में आचार्य भिक्षु ने दो भिन्न-भिन्न दृष्टान्तों के द्वारा शाश्वत सत्य को अनावृत किया है। एक योगी के मंत्रबल से चूहा बिल्ली से सिंह बना । सिंह बनकर वह योगी को ही खाने दौड़ने लगा। दूसरी ओर एक स्वामीभक्त नौकर जिसे राजा ने ठुकरा दिया, लेकिन वक्त पड़ने पर जब राजा विपत्ति में था तब नौकर ने पूरे सम्मान से राजा की सुरक्षा की। इन दृष्टान्तों के माध्यम से प्रस्तुत रचना में आचार्य भिक्षु ने विनीत और अविनीत शिष्य की मनोदशा को अभिव्यक्त किया है। २८. शील की नवबाड़
साधक जीवन की अनिवार्यता है ब्रह्मचर्य। उसके अखंड निर्वाह के लिए आगमों में कुछ संकेत वर्णित हैं । आचार्य भिक्षु ने प्रस्तुत कृति में उत्तराध्ययन सूत्र के आधार पर ब्रह्मचारी के लक्षण, रहन-सहन, व्यवहार आदि में वर्जनाओं का गंभीर विवेचन किया है। जिन्हें रूपक की भाषा में बाड़ कहा गया है । जिस प्रकार खेत की सुरक्षा के लिए कांटों की बाड़ आवश्यक है उसी प्रकार ब्रह्मचर्य की अखंड आराधना के लिए ९ वर्जनाओं की अपेक्षा है।
___ यह रचना ११ ढालों का संग्रह है, जिसमें ४६ दोहे और १६७ गाथाएं
सम्वत् १८४१ फाल्गुन कृष्णा १० बुधवार के दिन पादु ग्राम में इसकी रचना हुई, ऐसा उल्लेख मिलता है ।
इस कृति का सटिप्पण हिन्दी अनुवाद अलग प्रकाशित हो चुका है। २९. समकित री ढालां
जैन आगमों में मोक्ष प्राप्ति के आधारभूत कारणों में सम्यक्त्व का
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