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आचार्य भिक्ष, की साहित्य साधना
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इस कृति में २ ढालें, २ दोहे एवं कुल ५० गाथाएं हैं । रचनाकाल के विषय में कृति मौन है। २२. उरण री ढाल
सम्बन्धों की दुनियाँ में व्यक्ति एक दूसरे के प्रति कृतज्ञता से भर जाता है । सामान्यतः तीन व्यक्तियों से उऋणता प्राप्त करना बहुत आवश्यक है । माता-पिता, मालिक और गुरु, सन्तान, नौकर और शिष्य आध्यात्मिक दृष्टि से कैसे उऋणता प्राप्त कर सकते हैं ? इस विषय का रचना में सुन्दर विवेचन है । एक मार्मिक दृष्टान्त के द्वारा विषय को सामान्य बनाने का प्रयास किया गया है।
इस कृति में मात्र १ ढाल, १ दोहा और ७८ गाथाएं हैं। रचनाकाल के सम्बन्ध में यह रचना भी मौन है। २३. मोहणी कर्मबंध की ढाल
प्राणीमात्र के भव-भ्रमण का मुख्य कारण है-मोहकर्म । यही वह कर्म है जो प्राणी की ज्ञान-दर्शन की शक्ति को अवरुद्ध कर देता है। कुछ कार्य ऐसे हैं जिनसे मनुष्य मोहकर्म की सुदृढ़ शृखला से आवेष्ठित हो जाता है । इस कृति में आचार्य भिक्षु ने महामोहनीय कर्मबन्ध के सघनतम ३० निमित्तों का विवेचन किया है। इस रचना के गंभीर अध्ययन-मनन से व्यक्ति हिंसा आदि से बच सकता है।
इस रचना में ५ दोहे और ५० गाथाएं हैं । रचनाकाल सम्वत् १८३७ श्रावण कृष्णा रविवार तथा स्थान पादुगांव है। २४. दसवें प्राछित्त री ढाल
भूल होना व्यक्ति की नैसगिक वृत्ति है। किन्तु भूल का प्रायश्चित्त जरूरी है, जिससे आराधक पद प्राप्त किया जा सके । शास्त्रों में दस प्रकार के प्रायश्चित्त का विधान है। प्रस्तुत संगीत में दसवें प्रायश्चित्त की चर्चा है । किस प्रकार की भूल में यह प्रायश्चित्त दिया जाता है उसका सुन्दर विवेचन है। इस रचना का आधार स्थल है स्थानांग सूत्र । इसमें २ दोहे और २१ गाथाएं हैं । रचनाकाल उपलब्ध नहीं है । २५. जिण लखणा चारित आवे न आवे तिण री ढाल--
__ श्रामण्य जिन्दगी का वह अवसर है जो उसे मंजिल तक पहुँचाने का गहरा और सबल आश्वासन है। आगमों में उसे गुणों का महामार कहा है। जब तक अन्तःस्फुरणा नहीं होती, आत्मिक गुण प्रगट नहीं होते । श्रामण्य आ नहीं सकता। श्रामण्य प्राप्ति में किन-किन गुणों की अनिवार्यता है इसका सुन्दर विवेचन है प्रस्तुत कृति में। इस ढाल में ५ दोहे और ५७ गाथाएं हैं।
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