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आचार्य भिक्षु की साहित्य साधना
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(३) क्या जीव आदि रहित और अनन्त सहित है ? (४) क्या जीव आदि और अन्त सहित है ? भगवान ने समाधान की भाषा में कहा"श्री वीर जिणेसर कहे सुण गोयमा, ए च्यारु भांगा छे जीव ज्यांरा भेद विसतार कहूं छू जूजूआ ए सरध्या समकीत नींव" अपेक्षा भेद से इस वर्गीकरण को सिद्ध करते हुए भिक्षु स्वामी कहते
हैं
"ए आदि रहित ने अन्त रहित छै ए अभव सिधीया जीव जांण हो आदि नहीं पिण अंत सहित छे, ते भव सिधीया जीव पिछाण हो"
जे करम खपाए ने सिद्ध गीत में गया त्यांरी आदि छै पिण नारकी तिर्यंच मिनष ने देवता ए आदि ने अंत सहित है ।
इस प्रकार आचार्य भिक्षु ने अनेक सैद्धांतिक, आगमिक तर्क प्रस्तुत करते हुए पर्यायवादी मत की विशद् समीक्षा इस कृति में की है । इस कृति में तीन ढाले, १५ दोहे और ९०९ गाथाएं हैं । ९. टीकम डोसी की चौपाई
टीकम डोसी एक धार्मिक व्यक्ति थे। लेकिन सैद्धांतिक आदि अनेक बिन्दुओं पर वे सन्देहशील थे । आचार्य भिक्षु उनके एक-एक सन्देह का सूक्ष्मता से निवारण किया। उनकी अवधारणा को अभिव्यक्ति देते हुए आचार्य भिक्षु ने लिखा है
"बले सावध स्यूं पण लागो सरधे, तिण सावद्य ने कहे अधर्म पुन रो
कर्ता कहे अधर्म, ते जाबक भुलो मर्म" समाधान करते हुए आचार्य भिक्षु ने लिखा है
"सावध जोगां स्यूं पाप लागै छ, निरवद्य जोगां स्यूं निर्जरा होय ! बले निरवद्य जोगा स्यूं पुन पिण लागै, शुभजोगां ने संवर करद्यो मत कोय।"
इस प्रकार यह कृति तात्त्विक विषयों की गहरी चर्चा प्रस्तुत करती है । इस कृति में ५ ढालें, २८ दोहे और कुल १२८ गाथाएं हैं । १०. निक्षेपां री चौपाई
व्याख्या पद्धति का नाम है निक्षेप । उन्हें चार भागों में विभक्त किया गया है। वे हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । निक्षेप के विषय में विभिन्न अवधारणाएं प्रचलित थीं। आचार्य भिक्षु ने एक-एक निक्षेप का मौलिक स्वरूप प्रतिपादित करते हुए विशद् व्याख्या प्रस्तुत की है।
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