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भिक्खु दृष्टांत - एक अनुशीलन
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मैं नाथद्वारा में पावस प्रवास किया। उस समय युवाचार्य "जय" भी साथ थे । जयाचार्य का चिरपोषित स्वप्न था कि आचार्य भिक्षु के मधुर, रोचक एवं शिक्षाप्रद संस्मरण लिपिबद्ध किये जाये। इस पावस में जयाचार्य का यह स्वप्न फलित हुआ । बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी हेमराजजी स्वामी की सन्निधि में, जिनके ज्ञान प्रकोष्ठकों में लम्बी अवधि के बाद भी आचार्य भिक्षु से सम्बन्धित संस्मरण सुरक्षित थे । इस पावस में हेम मुनि ने जयाचार्य को ये संस्मरण लिपिबद्ध कराए ।
ये संस्मरण भावी पीढ़ी के लिए अमूल्य निधि बन गए। इन संस्मरणों के' संकलन का नाम रखा गया - भिक्खु दृष्टांत । इन दृष्टांतों को दो दृष्टियों से विश्लेषित किया जा सकता है ।
१. अनुभूत ।
२. श्रुत ।
कुछ संस्मरणों के हेमराजजी स्वामी स्वयं साक्षी रहे हैं । और कुछ उन्होंने स्वामीजी से तथा दूसरों से सुने उन संस्मरणों को जयाचार्य को लिपि -
बद्ध कराया ।
भिक्खु दृष्टांत
संस्मरण साहित्य में यह उच्च कोटि का ग्रंथ है । यह हमारे धर्मसंघ में ही नहीं, विश्व में राजस्थानी भाषा का दुर्लभ ग्रन्थ हैं । यह कृति हमारे धर्मसंघ की सांस्कृतिक धरोहर है। इसके बाद तेरापन्थ में संस्मरण लेखन की स्वस्थ पद्धति का शुभारम्भ हुआ जो आज तक अपने लक्ष्य की ओर निरंतर गतिमान् है ।
आचार्य भिक्षु तात्त्विक ज्ञान के अक्षय कोष, आगमज्ञ, प्रत्युत्पन्न प्रतिभा सम्पन्न विराट् व्यक्तित्व के धनी, कुशल प्रशासक, अनुशासननिष्ठ, आचारनिष्ठ एवं श्रमनिष्ठ इन विशेषताओं के पुरोधा थे । यह स्वामीजी के जीवन प्रसंगों के संकलन का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । आचार्य भिक्षु के संस्मरणों में तत्त्व-चिन्तन की सूक्ष्मता, तार्किक शक्ति की प्रखरता और जिज्ञासाओं को समाहित करने की अद्भुत क्षमता का दिग्दर्शन होता है ! उनके जीवन दर्शन को उजागर करने वाली ये घटनाएं और संस्मरण हमारे धर्मसंघ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं ।
इस ग्रन्थ को पढ़ने, मनन करने और अनुशीलन करने से सुधी पाठक अपनी प्रज्ञा की ऊंचाई को छू सकता है । अतः इन संस्मरणों को निम्नलिखित चार भागों में विभक्त किया जा सकता है:
(क) तत्त्व दर्शन
(ख) आचार दर्शन
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