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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
पदम सिंह शर्मा प्रमुख हैं। बनारसी दास चतुर्वेदी की दो महत्वपूर्ण कृतियां "संस्मरण" और हमारे अपराध' इनमें आकर्षक शैली में संस्मरण प्रस्तुत किए गए। इसके बाद के अनेक हिन्दी संस्मरण लेखकों ने अपने संस्मरण साहित्य में विभिन्न पात्रों का सजीव एवं कोमल चरित्र-चित्रण प्रस्तुत किया है। वस्तुत: संस्मरण-साहित्य व्यक्ति के मन में इन प्रसंगों, घटनाओं और संस्मरणों को आत्मसात् करने की ललक पैदा कर देता है।
भिक्खु दृष्टांत:--यह ग्रन्थ राजस्थानी भाषा का सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ है । अतीत में संस्मरणों की परम्परा बहुत क्षीण रही है। उस समय का लिखा हुआ यह संस्मरण ग्रन्थ भारतीय साहित्य में ही नहीं, विश्व साहित्य की अनुपम मिसाल है। संस्मरणात्मक शैली की अद्भुत और आकर्षक राजस्थानी भाषा की प्रथम कृति है।
__ इस कृति में 'पुण्यश्लोक' तेरापन्थ प्रणेता आचार्य भिक्षु के जीवनप्रसंगों का आंकलन किया गया है। इन महत्वपूर्ण जीवन-प्रसंगों का तेरापन्थ धर्मसंघ में अद्वितीय स्थान है। इसकी हस्तलिखित प्रति तेरापंथ भंडार में सुरक्षित है।
इस कृति के द्वारा आचार्य भिक्षु के कर्तृत्व, व्यक्तित्व और नेतृत्व का तलस्पर्शी अध्ययन किया जा सकता है। आचार्य भिक्षु की वास्तविक जीवन झांकी और उनके उदात्त विचारों का मूल आधार क्या रहा? यह दिशा बोध इस कृति के द्वारा प्राप्त हो सकता है। अतः इन संस्मरणों में मन की गहराईयों को छूने वाली अर्थवत्ता निहित है। कृति के संकलन कर्ता
__'भिक्खु दृष्टांत' के सृजनकर्ता हैं-प्रज्ञा पुरुष जयाचार्य । जिन्होंने अपनी अप्रतिम प्रज्ञा से आचार्य भिक्षु के ३१२ छोटे-छोटे अत्यन्त मार्मिक और रोचक राजस्थानी भाषा के संस्मरणों को इस ग्रन्थ में संजोया है। जिन्हें पढ़कर सुधी पाठकों को ऐसा अनुभव होता है, कि आचार्य भिक्षु और महामनीषी जयाचार्य भाषा विशेषज्ञ रहे हैं। इनके ग्रन्थों से "राजस्थानी सबद कोस" के निर्माता सीताराम जी लालस ने सैकड़ों राजस्थानी भाषा के शब्दों का संग्रह किया है।
___ 'भिक्खु दृष्टांत' भावों की प्रवणता, भाषा की मधुरता और शब्दशिल्पन-सौन्दर्य से महत्वपूर्ण ग्रन्थ बन गया है। इन विशेषताओं के कारण यह ग्रन्थ जयाचार्य की बेजोड़ सृजन क्षमता का परिचायक है । रचनाकाल
तेरापन्थ में संस्मरण साहित्य का अभ्युदय प्रज्ञापुरुष जयाचार्य से प्रारम्भ होता है । स्थित प्रज्ञ मुनिश्री हेमराजजी स्वामी ने वि० सं० १९०३
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