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आचार्य भिक्षुकृत सुदर्शन चरित का काव्य सौन्दर्य
वस्तु-संयोजन -
लोकप्रचलित या इतिहास प्रसिद्ध कथा को कवि अपनी अनुभूति की व्यापकता और अभिव्यक्ति की कला में आवेष्टित कर निरूपित करता है तो वह वस्तु कहलाती है । सुदर्शन-चरित की कथा इतिहास प्रसिद्ध किवा जैनसाहित्य में ख्यातिलब्ध है । संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश के अनेक कवियों
इस कथा का अश्रयण कर अपनी काव्य-कला का विस्तार दिया है । चम्पानगरी में सेठ ऋषभदास का पुत्र सुदर्शन रूपवान् गुणवान् और शीलसम्पन्न नवयुवक था । जिन धर्म में प्ररूपित श्रावक व्रतों का अनुपालक था । सार्थक अभिधान-अभिहिता सुन्दरी 'मनोरमा' उसकी भार्या थी । वार-बार उपसर्ग आने पर भी सुदर्शन शीलभ्रष्ट नहीं होता है । शील-सम्पन्न होकर धर्मघोष स्थविर के पास दीक्षित होता है । अन्त में निर्वाण को प्राप्त करता है ।
प्रस्तुत कथा शीलस्थापत्य में निरूपित है । शील-सौन्दर्य का प्ररूपण ही इसका मुख्य लक्ष्य है । कपिला, अभया और दवदन्ती वेश्या के द्वारा भूयोभूय कामुक उपसर्ग दिए जाने पर भी सेठ शील की रक्षा करता है । इस काव्य का प्रारम्भ भी शील- निरूपण से होता है।
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शीलव्रत जिण शुद्ध मनें पाल्यो निरतिचार | घोर परिषह ऊपणा पिण डोल्यो नहीं लिगार ॥ शीलवन्त सबही बड़ा जे पाले निर्मल शील । " X
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शील थकी जे गिर पड्या तेह सुणे चित्त ल्याय ।
सम्पूर्ण काव्य शील- स्थापना में ही समर्पित है । १६ वें ढाल में शील का काव्यात्मक रूप दर्शनीय है
शील व्रत हो व्रतां में प्रधान ||
जैसे रत्नों में वैडूर्य मणि और पुष्पों में अरविन्द श्रेष्ठ है उसी प्रकार व्रतों में शील
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रत्ना में वैडूर्य मोटको फूलां में हो मोटो फूल अरविंद । ज्यूं व्रतां में शीलव्रत बडो ॥
इस कथा में पूर्वदीप्ति प्रणाली ( फ्लेश बैक सिष्टम ) के तत्त्व भी पाए जाते हैं । धर्मघोष मुनि के द्वारा कथित सेठ सुदर्शन के पूर्व जन्मों की कथा " पूर्वदीप्ति प्रणाली का निदर्शन है । चरित्रकाव्यों का यह प्रमुख वैशिष्टय है । इस चरितकाव्य में भूत एवं वर्तमान का मिश्रण होने के कारण 'कालमिश्रण - स्थापत्य' भी पाया जाता है । सेठ की पूर्व जन्म की कथा भूतकाल और वर्तमान जन्म की कथा वर्तमान काल के उदाहरण हैं । इसके अतिरिक्त कथा
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