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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
मुख्य घटनाओं के साथ-साथ प्रासंगिक घटनाएं एवं आख्यानों के संदर्भ कारण इनकी कथ्य शैली अधिक प्रौढ़ व परिपक्व हुई है । प्रसंगानुसार पद्यमय संवाद भी इसमें बड़े आकर्षक बन पड़े हैं । प्रकृति वर्णन ने भी इन काव्यों को शैलीको आकर्षक बनाया है ।
भाषा एवं शैली में शब्द चयन एवं कहावतों व मुहावरों का महत्त्व पूर्ण स्थान होता है । इस दृष्टि से भी ये कृतियां मूल्यवान् बन पड़ी हैं । (१) शब्द चयन
काव्य सौन्दर्य की अभिवृद्धि के लिये कवि ने शब्द चयन और उनके प्रयोग को बड़ी कुशलता के साथ किया । ऐसा प्रतीत होता है कि एक-एक शब्द चुन-चुन कर रखा है । शब्द के माध्यम से अर्थ और भाव का सफल द्योतन करा देना सफल कवि की पहचान है । कवि ने यथा स्थान कोमल कान्त शांत रसान्तक और ओजमयी पदावली से काव्य का श्रृंगार किया है, इससे काव्य में चित्रात्मकता पैदा हुई है और बिम्ब व प्रतीकों की सृष्टि हुई है । भाषा का नाद - सौन्दर्य शब्दों की ध्वनि से ही स्पष्ट हो जाता है । वस्तुतः अपने शब्दचयन द्वारा अर्थ का मन चाहा प्रयोग करा लेना आचार्यश्री तुलसी की अपनी विशेषता है । शब्द- चयन की दृष्टि से इसमें तत्सम तदभव, देशज और आगत (उर्दू, फारसी, अरबी, अंग्रेजी) इन चारों प्रकार के शब्दों का कवि ने बड़ी कुशलता के साथ प्रयोग किया है, यथा—
तत्सम शब्द
तद्भव
देशज
क- माणक महिमा - संयम, वात्सल्य, अवनि, कुसुम, विनय ख - डालिम चरित्र स्मृति, पावन, प्रज्ञा, पथ, अतुल, अनुराग ग— कालूयशोविलास—- सरस, निशि, प्रभा, परिमल, नूतन, नभ घ - मगन चरित -- लोचन, अंग, नीरख मधुर, विकास
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क - माणक महिमा - पिछाण, जतन, पाछल, भेख, माथो ख - डालिम चरित्र - काम, वैराग, बरस, छिन्न, जुगगी, पूनम ग - कालूयशोविलास-माता, मिनख, पीढ़ी, मेवाड़, कान ध — मगन चरित्र - जश, नखत, थिर, मोच्छव, चौमासा
क --माणक महिमा - टालोकर, कोस, आंगूच, कूक, टीस, मोटी ख - डालिम चरित्र – राबड़ी, रलियावणी, पछेवड़ी, ओलंभो परपूठ ग कालू यशोविलास - नानूड़ो, रमत, टाबर, भाखर, डंडो घ — मगन चरित्र — चोखला, बाफला, ढोकला मगरा, गडार
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