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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
व्याजोक्ति
एक-एक गुण ऊपरे कोटि-कोटि कविराज । वरणन कर करता थकं, निज कविता रै व्याज ॥
(कालू यशोविलास, पृ० ४०४) अतिशयोक्ति ओ निर्णय न्यायधीशां रो, सुण-सुण धूजे धरती रै।
(डालिम चरित्र, पृ० ६६) दष्टान्त __ जयाचार्यं अनिवार्य आज, जयपुर में झण्ड जमाव । बड़े भाग सौभाग शहर में, पावस-झड़ बरसावै ॥
(माणक महिमा, पृ० २७) अतिरेक माखण स्यूं बढ़कर कोमल मधव हृदय है।
(मगन चरित्र, पृ० १७)
स्मरण
अरे रे ! बै रातां, विगत दिन बांता सूमरतां, भरीजै है छाती, विरह दुःख बाती उभरता । कठे वे श्रीकालू वरद कर म्हारै शिर धर्यो। मनै पाल्यो पोस्यो, मधु मधुर शिक्षामृत झर्यो ।
___ (मगन चरित्र, पृ० १६) विरोधाभास
स्वास्थ्य-विघातक मीठो इमरत, विष सो काम बढ़ावै । स्वास्थ्य सुधारक विष भी इमरत की तुलना में आवै ॥
(मगन चरित्र, पृ० ६९) इन उद्धरणों के अलावा और भी अलंकार यथा निदर्शना, स्वाभावोक्ति, उदाहरण, प्रतिवस्तुपमा आदि का प्रयोग भो देखने को मिलता है।
वयण सगाई-यह राजस्थानी साहित्य में प्रयुक्त सर्वाधिक लोकप्रिय शब्दालंकार है। राजस्थानी के अतिरिक्त अन्य किसी भाषा में यह अलंकार दृष्टिगोचर नहीं होता है । आचार्यश्री तुलसी की इन चारों कृतियों में भी यह वयण सगाई अलंकार उपलब्ध होता है, यद्यपि कवि ने अन्य डिंगल या राजस्थानी कवियों की तरह इस वयण सगाई अलंकार का प्रयोग अनिवार्य रूप में नहीं किया है और न इस अलंकार को सप्रयास काव्य में लाने का ही प्रयास किया है। जहाँ कहीं भी यह आया है स्वाभाविक रूप से आया है। यह वयण सगाई अलंकार तीन प्रकार का होता है, आदिमेल, मध्यमेल एवं
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