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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
बयागट-बनावट
सचकारी बायड़ आबो
सरीसा--सरिस बलद-बैल
सागै-साथ बिरंग
सादावै बीरा
सुणणारो व्हावड़ी-लौंटी .
सेंचनण-सिंचन मसोसीजता--मसोसते हुए
सेज-शय्या मुण्डाग-~~-मुण्ड अग्रे
(अ) सैंधापण मेलो मंड्यो
सैनाण--संज्ञान मैकता—महकते
स्यांच्योई रूं रूं-रोम-रोम
स्याणो रूवाली-रोमाली
हिचकोलै लागी के ल्याऊं
हूंस-मनहूस लाय-आग
हेज वृत्तंत-घटना
होतव-भवितव्य। यह भी ध्यातव्य है कि तेरापंथी साहित्य में विभिन्न भाषाओं से शब्द लिये मात्र नहीं गये हैं, उनका समुपयुक्त संस्कार भी किया गया है। यह संस्कार कई प्रकार का है। प्रथम है अन्य भाषाओं के शब्दों को राजस्थानी सांचे में ढालना । यथा-संस्कृत 'दिङ्मूढ़' का 'दिग्मूढ़, 'अक्षुद्र' (प्रा. अखुद्द) का 'अखुद्र', हिन्दी 'होकर' का 'ह'र', प्राकृत 'अलुज्झ' का 'उलझ', पंजाबी 'शासणदा' और 'बणदा' (बनता है) को इन्हीं रूपों में ग्रहण करना तथा उर्दू का 'लवाजमा' का 'लकजमो' बना लेना, आदि। इसी प्रकार अन्य भाषाओं के शब्दों को राजस्थानी रूप दिया गया है । संस्कृत, उर्दू, हिन्दी के उदाहरण यहां दिये जाते हैं । देखियेराजस्थानी में रूपान्तरित संस्कृत शब्दअगन सिनान-अग्नि स्नान अधवसाय-अध्यवसाय अणगारी-अनागार
अंधारो-अंधकार अणबूझ-अबूझ-अबुध्य
अंतरजामी-अंतर्यामी अणभूती-अनुभूति
अंतरिख-अंतरिक्ष अणभूत्यां-अनुभूतियाँ
अपरमाद-अप्रमाद अणभै-अभय
अमरित-अमृत अणलाध्यै---अलब्ध
अमावस-अमावस्या अदीठ-अदृष्ट
अरथकार-- अर्थकार
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