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राजस्थानी चरित काव्य-परम्परा और आ० तुलसीकृत चरित काव्य ४५ हेमचन्द्राचार्य कृतः “कुमारपालचरितम्' (१२वीं शती ई०) आदि चरित काव्य उपलब्ध होते हैं । बारहवीं शती के बाद तो संस्कृत में चरित काव्यों की एक लम्बी शृंखला मिलती है ।
अपभ्रंश में चरितकाव्यों की रचना का सर्वप्रथम उल्लेख ईस्वी सन् की आठवी शती के कवि स्वयंभू के "रिट्ठणेमिचरिउ" और "पउमचरिउ" आदि शीर्षक कृतियों के रूप में मिलता है। इसके बाद महाकवि पुष्पदन्त (१०वीं शती अनुमानित) की रचनाएं "णायकुमारचरिउ" और "जसहरचरिउ" कवि घाहिल कृत "पउमसिरिचरिउ” (१०वीं शती ई०) मुनि कनकामर कृत "करकंडचरिउ" (१०वीं शती) आदि चरित काव्य उपलब्ध होते हैं। अपभ्रंश में भी चरितकाव्यों की प्राकृत व संस्कृत की तरह सुदीर्घ परम्परा मिलती है। राजस्थानी चरित काव्य-परम्परा
राजस्थानी साहित्य काफी समृद्ध है। यह गद्य व पद्य दोनों रूपों में प्रचुर परिमाण में उपलब्ध होता है । पद्य साहित्य में मुक्तक और प्रबन्ध काव्य विषय-वस्तु की दृष्टि से विविध रूपात्मक है । मुक्तक काव्य बारह प्रकार के हैं यथा-संख्यामूलक, छन्दमूलक, वन्दनामूलक, बुद्धिपरीक्षामूलक, उपदेशमूलक, संवादमूलक, मंगलमूलक, तीर्थयात्रामूलक, मालामूलक, संगीतमूलक, स्वाध्याय मूलक और अन्य ।' इसी प्रकार प्रबन्ध काव्य भी पांच प्रकार के हैं -यथा, नृत्य-संगीतमूलक, चरितमूलक, मंगलमूलक, प्रेमव्यंजनामूलक और विज्ञानमूलक ।
इसमें चरितकाव्य परम्परा राजस्थानी में काफी उल्लेखनीय एवं महत्वपूर्ण है। यह प्राचीन व समृद्ध भी है। रूप परम्परा की दृष्टि से भी काफी चर्चित है। इन चरितकाव्यों के नामकरण की भी अपनी एक विशिष्ट शैली है। यह आवश्यक नहीं है कि इन चरित काव्यों के नामकरण में "चरित" शब्द को जोड़ा ही जाय । “चरित' के अतिरिक्त अन्य शब्दों को भी चरित काव्य के नामकरण में जोड़ कर उनमें एक अनूठा आकर्षण पैदा किया गया है । ऐसे शब्दों में विलास, प्रकाश, रूपक, प्रबन्ध, प्रवाड़ा रास, चौपाई, बेलि, संधि कथा, आख्यान, झूलणा आदि मुख्य हैं।
___ इनमें भी विलास, प्रकाश, रूपक, चरित और प्रबन्ध संज्ञक रचनाओं में कोई तात्विक अन्तर नहीं है।' इनकी मुख्य विशेषता यह है कि जो प्रबन्धकाव्य जिस महापुरुष को आधार बनाकर लिखा गया है, उसके नाम के साथ विलास, प्रकाश, रूपक, चरित, प्रबन्ध आदि संज्ञाएं जोड़ दी गई हैं। विलास व प्रकाश संज्ञक रचनाओं में कभी-कभी कथानक को सगों की तरह "विलास" "प्रकाश'' में भी विभाजित कर दिया जाता है। रूपक
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