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राजस्थानी परित काव्य-परम्परा और आ० तुलसीकृत चरित काव्य
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पुष्ट किया, आचार्य मघराजजी व माणकगणी ने इसे सींचा तथा तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान आचार्य श्री तुलसीगणी ने राजस्थानी चरित काव्यों की इस वल्लरी को पुष्पित किया। इन सबने राजस्थानी चरित काव्यों को नये आयाम दिये तथा तेरापंथ के चरित काव्यों को चरित, बरवांण, चौपई, रसायण विलास, सुजश नवरसो, ढालियो आदि अन्य कई अभिधानों से भी अभिहित किया । ऐसे चरित काव्यों की एक लम्बी सूची है । यथा :१. आचार्य भिक्षु कृत चरितकाव्य
भरत चरित, जंबूकुमार चरित, सुदर्शन चरित, सुबाहुकुमार रो बखाण, मल्लिनाथ रो बखाण, सकडाल पुतर रो बखाण, धना अणगार
रो बखाण, द्रौपदी रो बखाण आदि २. मुनिश्री हेमराजजी कृत चरित काव्य--
भीखू चरित, आचार्य भारी माल रो बखाण ३. मुनिश्री वेणीदासजी कृत चरित काव्य
भीखू चरित ४. जयाचार्य कृत चरित काव्य ---- भिक्खुजस रसायण, सतजुगी चरित, सरूप विलास, शांति विलास, भीम विलास, सरदार सुजश, हेम नवरसो, शिवजी रो चोढालियो, वेणीरामजी रो चौढालियो मोतीजी, उदय चंदजी, हरखजी, हस्तूजी
कस्तूजी आदि के चौढालिये। ५. आचार्य मघराजजी कृत चरितकाव्य
आचार्य जीतमलजी रो बखांण ६. आचार्य माणक गणी कृत चरित काव्य
आचार्य मघराजजी रो बखांण आचार्य तुलसी कृत राजस्थानी चरित काव्य-~~
तेरापंथ धर्मसंघ में राजस्थानी चरित काव्यों की इस परम्परा को वर्तमान आचार्य भारत ज्योति आचार्य श्री तुलसी ने विस्तृत एवं सुदृढ़ आधार प्रदान किया । उन्होंने राजस्थानी चरित काव्यों में न केवल एक नवीन शैली प्रदान की अपितु भाषा, भाव एवं कला पक्ष की दृष्टि से भी उन्हें एक नई दिशा दी। उनके द्वारा अब तक राजस्थानी में चार चरित काव्यों की रचना की गई है। उन चारों का संक्षिप्त परिचय उनके रचनाकाल के क्रम से इस प्रकार है:------ (१) कालू यशोविलास
यह चरित काव्य तेरापंथ के अष्टमाचार्य कालगणी के जीवन से सम्बन्धित है। इसका निर्माण कार्य वि.सं. १९९६ फाल्गुन शुक्ला तृतीया
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