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आचार्य तुलसी के काव्य में से अर्थापदेश के कुछ उदाहरण
(क) ' कुम्हारी री करामात' में
१. दारासुख की कारा
कारा—जेल । अर्थापदेश से अर्थ हुआ - ' केवल अपने में ही सीमित, संकीर्ण, संकुचित या बन्द रख लेने वाली ।'
२. अति दूर नगर, निर्जन वन री, आ हालत |
तो पुर- प्रवेश में भारी पड़े वकालत ॥
इसमें 'तवालत' शब्द नहीं लिखकर ' वकालत' का प्रयोग किया गया है । वकालत - वकील का कर्म । अर्थापदेश से अर्थ निकला - प्रयास, मार्ग प्रशस्त करने का कार्य ।
३. सारी जोखिम ज़ब्त-
तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
जोखिम - खतरा | अर्थापदेश से अर्थ निकलता है 'खतरा लाने वाली वस्तु', अर्थात् 'सम्पत्ति' । यह अर्थादेश अर्थ - विस्तार के द्वारा सम्पन्न हुआ है।
४. फिर-फिर सगरयो शहर जुहार्यो, हार्यो नहीं हज़ारी । 'हज़ारी' में अर्थ - विस्तार के द्वारा अर्थापदेश हुआ है । अर्थ है हजार जगह घूमने वाला, साहस नहीं हारने वाला व्यक्ति । (ख) 'सपने रे संसार' में -
दरदी - दर्द, कष्ट वाला । अर्थापदेश से, अर्थ-संकोच के द्वारा अर्थ हुआ 'रोगी', किसी भी रोग से ग्रस्त व्यक्ति ।
अर्थ - गौरव उत्पन्न करने के लिए तेरापंथी काव्य में विशेषतः तीन विधियाँ या शैलियाँ ग्रहण की गयी हैं । ये हैं
(१) नादात्मक शब्दों का प्रचुर प्रयोग; यथा
भोली, ठाऊं-माऊं (अनभिज्ञ), ढींचाल ( बड़े डीलडौल वाला), ढकना (आरंभ करना), दड़बड़ ( भाग-दौड़ ), दडूकना ( सांड क: शब्द करना ), raat (प्रभाव ), दिग्दू (पिंजारे के रुई पींजने का शब्द ), धाड़फाड़ ( साहसी, निडर ), धूणना ( हिलाना), धड़ींग ( जबर्दस्त ) आदि ।
(२) समासों का विशेष निर्माण; यथासघन - पुरुषार्थ, आत्मख्यापन,
चिकित्सा, कर्म - विलय ।
वज्र - संकल्प,
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आत्म- रमण,
इस पद्धति द्वारा हिन्दी, उर्दू या अंग्रेजी के शब्दों को राजस्थानी शब्दावलि के भीतर अचापचा लिया गया है ।
भाव
(३) भाषा-समक
अमीर खुसरो आदि कवियों ने 'भाषा - समक' का प्रयोग किया गया
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