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________________ ३६ आचार्य तुलसी के काव्य में से अर्थापदेश के कुछ उदाहरण (क) ' कुम्हारी री करामात' में १. दारासुख की कारा कारा—जेल । अर्थापदेश से अर्थ हुआ - ' केवल अपने में ही सीमित, संकीर्ण, संकुचित या बन्द रख लेने वाली ।' २. अति दूर नगर, निर्जन वन री, आ हालत | तो पुर- प्रवेश में भारी पड़े वकालत ॥ इसमें 'तवालत' शब्द नहीं लिखकर ' वकालत' का प्रयोग किया गया है । वकालत - वकील का कर्म । अर्थापदेश से अर्थ निकला - प्रयास, मार्ग प्रशस्त करने का कार्य । ३. सारी जोखिम ज़ब्त- तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान जोखिम - खतरा | अर्थापदेश से अर्थ निकलता है 'खतरा लाने वाली वस्तु', अर्थात् 'सम्पत्ति' । यह अर्थादेश अर्थ - विस्तार के द्वारा सम्पन्न हुआ है। ४. फिर-फिर सगरयो शहर जुहार्यो, हार्यो नहीं हज़ारी । 'हज़ारी' में अर्थ - विस्तार के द्वारा अर्थापदेश हुआ है । अर्थ है हजार जगह घूमने वाला, साहस नहीं हारने वाला व्यक्ति । (ख) 'सपने रे संसार' में - दरदी - दर्द, कष्ट वाला । अर्थापदेश से, अर्थ-संकोच के द्वारा अर्थ हुआ 'रोगी', किसी भी रोग से ग्रस्त व्यक्ति । अर्थ - गौरव उत्पन्न करने के लिए तेरापंथी काव्य में विशेषतः तीन विधियाँ या शैलियाँ ग्रहण की गयी हैं । ये हैं (१) नादात्मक शब्दों का प्रचुर प्रयोग; यथा भोली, ठाऊं-माऊं (अनभिज्ञ), ढींचाल ( बड़े डीलडौल वाला), ढकना (आरंभ करना), दड़बड़ ( भाग-दौड़ ), दडूकना ( सांड क: शब्द करना ), raat (प्रभाव ), दिग्दू (पिंजारे के रुई पींजने का शब्द ), धाड़फाड़ ( साहसी, निडर ), धूणना ( हिलाना), धड़ींग ( जबर्दस्त ) आदि । (२) समासों का विशेष निर्माण; यथासघन - पुरुषार्थ, आत्मख्यापन, चिकित्सा, कर्म - विलय । वज्र - संकल्प, Jain Education International आत्म- रमण, इस पद्धति द्वारा हिन्दी, उर्दू या अंग्रेजी के शब्दों को राजस्थानी शब्दावलि के भीतर अचापचा लिया गया है । भाव (३) भाषा-समक अमीर खुसरो आदि कवियों ने 'भाषा - समक' का प्रयोग किया गया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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