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राजस्थानी शब्द - सम्पदा को तेरापंथ का योगदान
मुनि मोहनलाल 'आमेट' का काव्य ' तथ' र कथ' (सन् १९७१) अर्थापदेश की सुन्दर छटा प्रदर्शित करता है । उनके काव्य में अर्थापदेश लक्षणा और व्यंजन शक्तियों से समन्वित होकर अर्थ- गौरव सम्पन्न होता है । द्रष्टव्य है :--
पृष्ठ २
विभूति - राख धूलि ।
१. बां गां पड़ी धूल मजल री बभूत है । यहां 'भूत' शब्द में अर्थापदेश है । बभूत भाशय यह है कि सन्तों के चरणों में लगी हुई मार्ग रहती, वह मंजिल ( गन्तव्य ) की उपलब्धि की निदर्शिका है । वह सन्तों, सिद्ध जनों के शरीर की शोभा बढ़ाने वाली भस्मांग- स्वरूप
की धूलि धूलि नहीं 'विभूति' हो जाती
हो जाती है ।
२. भूख की भभक सूं वीं रैं तो दाणो ही दाख है । पृष्ठ ६
भूखे व्यक्ति के लिए तो अनाज के दाने ही दाख अर्थात् स्वाद के निधान, तथा जीवनाधार हैं ।
३५
३ आपणूं आपणूं राम । - पृष्ठ ५२
राम का नायकत्व, उनका रामत्व प्रत्येक व्यक्ति की चेतना में पृथक्पृथक् स्वरूप का है ।
४. करम घूंटी र अभाव में आदरस र ज्यावै है बण कर कोरो सबदजाल । - पृष्ठ ६४
प्रयोग द्रष्टव्य है : जन्मघूँटी के स्थान पर कर्मघूँटी । यह प्रच्छन्न अर्थ - सादृश्य कर्म के महत्त्व को अधिक प्रकाशित करता है । कर्मघूंटी का तात्पर्य है -- जन्म से ही डाले गए निरन्तर कर्मशील रहने के संस्कार |
५ जठ आज भी है अमावस । -
- पृष्ठ ७१
यहां अमावस शब्द में प्रतोक, बिम्ब, लक्षणा और व्यंजना का समन्वित विभव प्रकट हुआ है । अमावस का अर्थ है --चित्त में जड़ता भर देने वाला निराशाजन्य अन्धकार |
६. ओसाण । - पृष्ठ ९७
ओसाण अवसान । अवधान अर्थ में प्रयुक्त होता है; यथा औसान चूकता | सावधानी वूकना, असावधान रह जाना, प्रमाद कर देना । 'ओसाण को नी बींने के आसरो कठो है ।'
उसे यह ध्यान ( अवधान), चेत ही नहीं है कि आश्रय कहां है । ७. सपनां जणांई पूग्या है सत् रे नेड़ा, पलकां खुली 'र पुतल्यां डूबगी । ---- पृष्ठ
सत्य के निकट पहुंचने पर पलकें खुल जाती हैं, चेतना प्राप्त होती है । किन्तु तब पुतलियां डूब गईं, मन ध्यानस्थ हो गया ।
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