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श्रावकाचार
वारणतरण
॥३४॥
- भावार्थ-मदनाशक सर्वज्ञदेवने कहा है कि ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप, शरीर रूप, इन आठोंके आश्रयसे मान करना आठ मद हैं।
सम्यक्ती संसार शरीर भोगोंसे अत्यन्त उदास रहता है, वह मोक्षा व आत्मीक परमा. नन्दका प्रेमी है इसलिये वह कर्मों के द्वारा उत्पन्न हुई अवस्थाओंसे अपनेको बड़ा नहीं मानता है। इसलिये वह आठ तरहका मद नहीं करता है। मैं बहुत शास्त्रका जाननेवाला हूं ऐसा घमंड करना ज्ञान मद है। मैं बहुत अधिकार रखता हूं, प्रतिष्ठित हूं ऐसा घमंड करना पूजा मद है। मैं ऊंचे वंशका हूं, मेरे पिता, महा पिता ऐसे हैं यह घमंड करना कुल मद है । मेरी माता पक्षके मामा, नाना ऐसे ऐसे हैं यह घमंड करना जाति मद है। मैं बड़ा बलवान हूं, चाहे जिसे वश कर सक्ताह यह घमंड करना बल मद है। मैं बड़ा धनवान हूं, इसतरह गरीबोंको तुच्छ दृष्टिसे देखकर धनका घमंड करना ऋडि मद है। मैं बड़ा तपस्वी ई, बहुत व्रत उपवास करता हूं ऐसा मद करना तप
मद है। मैं बहुत रूपवान सुंदर हूं ऐसा घमंड करना शरीर मद है। ज्ञानी जीव धनादिकी शक्ति * होनेपर उसे परोपकारमें खर्च करता है तथा जैसे वृक्षपर जितने अधिक फल आते हैं वह नम्रीभूत र होजाता है उसी तरह जितनी भी शक्ति विद्या, धन आदिकी ज्ञानीमें बढ़ती जाती है उतना ही वह अधिक नम्र व विनयवान होजाता है। और उस शक्तिसे स्वपरका उपकार करता है।
सम्यक्ती शंका आदि आठ दोष अपने में नहीं लगाता है । वे आठ दोष हैं:
(१) शंका-जैनके तत्वों में शंका रखना-जैनधर्मके तत्वों में दृढ़ श्रद्धानी होता हुआ शंका नहीं रखता है। यदि कोई बात समझमें नहीं आती है तो विशेष ज्ञानीसे पूछकर निर्णय करता है तथा सम्यक्ती निर्भय रहता है। धर्मसाधनको किसीके भयसे छोड़ता नहीं है। भय सात तरहका होता है
१-इहलोक भय-इस लोकमें लोग मुझे निदेगे या मेरी हानि होजायगी ऐसा भय । .-परलोक भय-परलोकमें मैं नर्क, पशु आदि दुर्गतिमें चला जाऊंगा ऐसा भय । ३-वेदना भय-मुझे रोगादि होजायंगे तो क्या करूंगा ऐसा भय । ४-अरक्षा भय-मेरा कोई रक्षक नहीं है, संकटोंसे कौन बचाएगा ऐसा भय ।