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अधिक है; और भोजन पकाते समय भी हम उसमें पानी मिलाते हैं। तब हमें प्यास क्यों लगती है ? उन लोगों को पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती, जिनके भोजन में मसाला और प्याज न मिला हो। जिन्हें अधिक प्यास लगती है, वे अवश्य किसीन-किसी रोग के शिकार हैं।
दूसरे को पानी पीते देख प्यास न होने पर भी हमारी इच्छा पानी पीने को होती है। इसी बुनियाद पर हम उस पानी को पीते भी हैं, क्योंकि दूसरों को पोते देखते हैं। इसके लिये वायु के परिच्छेद में, पहले ही कहा जा चुका है। हमारे खून में स्वयं इतनी शक्ति है, जो बहुतेरे विषों को नाश कर देती है। लेकिन उस खून की शुद्धि की उसी प्रकार आवश्यकता पड़ती है, जिस प्रकार एक बार प्रयोग करने के बाद तलवार को साफ करने की आवश्यकता होती है। यदि हम लोग गन्दले पानो को बराबरों पीते रहें, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, कि हम लोग का खून अन्त में विषैला हो जाय ।
५-भोजन भोजन के विषय में नियम निर्धारित करना कठिन ही नहीं, वरन् एक जटिल समस्या है। इसमें मतभेद है कि कब, कितना
और किस प्रकार का भोजन खाना चाहिए। मानव प्रकृति इस सम्बन्ध में इतनी भिन्नता रखती है कि एक ही पदार्थ एक के लिए गुणकारी और दूसरे के लिए हानिकारक सिद्ध होता है ।
यद्यपि यह कहना कठिन है कि किस प्रकार का भोजन ग्राह्य है। फिर भी इस सम्बन्ध में कुछ विचार करना अति आवश्यक है; क्योंकि बिना भोजन किए मनुष्य जीवित नहीं रह सकता।