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जब आवश्यकता पड़े तुरन्त मिल जाय। यह केवल साँप के काटने पर ही काम न देगा बल्कि अन्यान्य रोगों में भी काम देगा।
यदि रोगी बेहोश हो गया हो या उसका स्वाँस न्वलना बन्द हो गया हो तो स्वाँस संचार करने की क्रिया जो डूबने के विषय में बतलाई गई है काम में लानी चाहिये। गर्म पानी, तज और लौंग का काढ़ा होश में लाने के लिए बड़ा उपयोगी होता है। रोगी को खुली हवा में रखना चाहिए। लेकिन यदि उसका शरीर ठंडा. मालूम हो तो गर्म जल से भरी बोतलों को प्रयोग में लाना चाहिए या फलालैन का टुकड़ा गर्म पानी में भिंगोकर उसके बदन पर मलना चहिए ताकि बदन में गर्मी आ जाय ।
बिच्छू का काटना---यह कहावत प्रसिद्ध है, 'ईश्वर न करे कि किसी को बिच्छू काटे' इस बात से भी सिद्ध होता है कि इसका काटना कितना दुःखदाई होता है। वास्तव में इसका दर्द साँप से कहीं बढ़कर होता है। लेकिन हम लोग इससे डरते नहीं क्योंकि इससे मृत्यु का डर नहीं रहता। डा० मूर का कहना ठीक ही है कि जिसका खून स्वच्छ है उस पर इसके विष का असर नहीं होता। ___ इसका उपचार बहुत साधारण है, बिच्छू के काटे हुए स्थान को काट कर खून निकाल देना चाहिए । काटे हुये स्थान से कुछ ऊपर खींच कर बाँधना चाहिये। इसके बाद उस पर मिट्टी की पुलटिस बाँध देनी चाहिये इससे दर्द शीघ जाता रहेगा।
कुछ लेखकों का कहना है कि सिरका और पानी को बराबरबराबर मिलाकर उसमें कपड़ा भिगोकर काटे हुए स्थान पर पट्टी बांधनी चाहिए या उस स्थान को नमक मिले पानी से बराबर धोते रहना चाहिए लेकिन मिट्टी की पुलटिस सबसे अधिक लाभदायक है। जिसका अनुभव उस मनुष्य को अवश्य हुआ.