Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 36
________________ भक्षी जीवों से शारीरिक अवयवों में बहुत कम अन्तर है। उदाहरण के लिए बन्दर को लीजिये। वह मनुष्य के अग से बहुत मिलता-जुलता है, और एक फलाहारी जीव है। उसके दाँत और पेट मनुष्य के दाँत और पेट जैसे होते हैं। मांसाहारी जीव जैसे शेर, चीते वगैरह सर्वथा उससे भिन्न होते हैं। मनुष्य और तृणभक्षी जीव, जैसे गाय वगैरह के भी कुछ अंग मिलते-जुलते हैं; लेकिन उनके जबड़े बहुत बड़े होते हैं तथा रंग-रूप में भी कुछ भिन्नता होती है। इन सब बातों के आधार पर वज्ञानिकों का मत है कि मनुष्य का भोजन मांस नहीं और न केवल शाक ही है, बल्कि मूल-फल है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि फलों के अन्दर वह सब तत्त्व पाये जाते हैं, जो मनुष्य के लिए आवश्यक है । केले, संतरे, खजूर, अंगूर, सेव, बादाम, मूंगफली इत्यादि में अधिक मात्रा में पुष्टिकारक तत्त्व मौजूद हैं । उनकी यह भी राय है कि भोजन को . पकाना नहीं चाहिए, धूप-से पके हुए फल अत्यन्त लाभदायक होते हैं। पकाये हुए भोजन का पुष्टिकारक तत्त्व नष्ट हो जाता है। जो वस्तु बिना आग पर पकाये हम नहीं खा सकते, उसे प्रकृति ने हमारे लिए नहीं बनाया है। यदि यह बात सत्य है तो हमें समझना चाहिए कि हम अपना बहुमल्य समय भोजन पकाने में व्यर्थ नष्ट करते हैं। यदि हम लोग बिना पकाये हुए भोजन पर रह सकते हैं, तो हमारा समय, स्फूर्ति और पैसे की बचत हो सकती है, और ये साधन सुधार के कार्यों में लगाये जा सकते हैं । कुछ लोग ऐसा कहेंगे कि बिना पकाये हुए भोजन पर जीवन निर्वाह करने की आशा केवल मखता है, क्योंकि ऐस आजन्म नहीं किया जा सकता। लेकिन इस समय हम इस विषय पर नहीं विचार कर रहे हैं कि सब लोग इस नियम के अनुसार चल

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