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लेकिन इसमें सन्देह नहीं कि उसी जगह अन्य रोग हो जायंगे।
पेचिस के रोगी का सबसे पहला यह काम होना चाहिये कि जहाँ तक हो सके भोजन की मात्रा कम कर दे ऐसे पदार्थ जैसे कि घी, खाण्ड, मक्खन वगैरह का तो उसे बिल्कुल ही परित्याग कर देना चाहिये । शराब, तम्बाकू, कल के आटे की रोटियाँ, भंग चाय, कहवा वगरह तो उसे छना भी नहीं चाहिये । उसका खाद्य पदार्थ मुख्यतः फल और जैतून का तेल होना चाहिये।
- किसो औषधि का प्रयोग करने से पहले रोगो को ३६ घंटे तक उपवास करना चाहिये। उपवास के समय तथा उसके बाद मिट्टी की पुलिटिश उसके पेड़ पर बाँधनो चाहिए और जैसे कि पहले कहा जा चुका है, डा० लूईकूने के मतानमार उसे स्नान भी कराना चाहिए। रोगी को प्रति दिन दो घंटा टहलना चाहिए । मैंने कितने हो कज, संग्रहणी, पेचिश और बब सीर के रोगियों को इस साधारण उपचार से नीरोग होते देखा है। हो सकता है कि बवासीर बिलकुल आराम न हो, लेकिन कम से कम उसका दर्द तो जाता हां रहेगा। पेचिश के रोगों को गर्म पानी में निम्बू के रस के सिवाय और कुछ नहीं खाना चाहिए, विशेषकर उस अवस्था में जब कि उसे आँव या खून आता हो । यदि पेट में अधिक मरोड़ आती हो तो गर्म पानी से भरी बोतल या गर्म किया हुआ ईंट के टुकड़े से पेट को संकना चाहिए इससे दर्द बिलकुल बन्द हो जाता है। रोगी को हर हालत में खुली हवा में रहना चाहिए। ___कज के रोगी को अंजीर, फैच पाम्स ( बेर ) बड़ा मुनक्का नारंगी, केला, किशमिश और हरो दाख बहुत लाभ पहुँचाती है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि भूख न रहने पर भी ये फल खाये जाँय । पेट में मरोड़ होती हो या मुँह का स्वाद बिगड़ गया हो उस हालत में तो ये फल भी हरगिज नहीं खाना चाहिए।