Book Title: Swasthya Sadhan
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Gandhi Granthagar Banaras

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Page 108
________________ अपनी हिंसक प्रवृत्ति छोड़ देंगे और हमारे साथ मित्रवत् -लगेंगे । जब हमारे ही अन्दर सिंह और बकरी की लड़ाई व चलती रहती है तो इसमें क्या आश्चर्य है यदि शरीर रूपी र में भी ऐसा ही युद्ध हुआ करे । मनष्य जीवन ही संसार जब जीवों में आदर्श माना गया है अतः जब हम लोग अपने बाव को बदल डालेंगे तो दुनियाँ के सभी जीव भी अवश्य ही ने स्वभाव को बदल डालेंगे जो मनुष्य अपने स्वभाव को स्वयं न लेता है। उसके लिये दुनिया बदल जाती है। ईश्वर को तथा हमारी प्रसन्नता का यही रहस्य है हमारी प्रसन्नता न हमारे ही ऊपर निर्भर करती है और इसके लिए हमें दूसरों अवलम्बित नहीं रहना चाहिए। सो के काटने पर उसके उपचार के विषय में लिखने की आ सर्पो के विषय में इतना अधिक लिखने का यही कारण - हम लोगों का भय उनसे मिट जाय । यदि इस पुस्तक के वालों में से एक भी-जो मैं अब तक लिखता आया हूँ, । अनुसार चलेगा तो.मैं अपना परिश्रम सफल समझूगां । अतिरिक्त इतने पृष्ठों के लिखने का मेरा मतलब केवल वैज्ञाकल्पनाओं को ही दर्शाना नहीं है, बल्कि उसके मूल तत्व ढना है और लोगों को आरोग्य-सन्देश देने पर विचार अाधुनिक आविष्कारों से भी पता चलता है कि उस मनष्य जो पूर्ण स्वस्थ है, जिसका खून गर्म है और जिसका भोजन रग नथा सात्विक है, साँप का जहर जल्दो असर नहीं । जिसका खून दूषित और भोजन सात्विक नहीं है उस हर का असर शोध होता है । एक डाक्टर का कहना हैं कि नष्य नमक नहीं खाता और जिसका मुख्य भोजन फल है, । खून इतना स्वच्छ होता है कि उसके ऊपर किसी भी विष

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