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भी रोग प्रत्यक्ष कम हो जाता है किन्तु इससे अन्य दूसरे रोग उत्पन्न हो जाते हैं | मलेरिया रोग के लिये कुनैन बहुत उपयोगी है लेकिन मुझे मालूम है कि इससे चिरस्थायी लाभ नहीं होता । मलेरिया से पीड़ित रोगियों को उपरोक्त उपचार से पूर्णतः स्वस्थ होते मैंने देखा है ।
बुखार की हालत में बहुत लोग केवल दूध पोकर रहते हैं । लेकिन मेरा अनुभव है कि वास्तव में बुखार के शुरू में दूध देने से हानि होती है । क्योंकि इसको पचाना कठिन है । यदि दूध देना ही हो तो उसे गेहूँ की बनी कहवा के साथ थोड़ा दूध और चावल का आटा मिलाकर उसे अच्छी तरह पका कर दिया जा सकता है । लेकिन अधिक ज्वर की दशा में इसे भी नहीं देना चाहिये । ऐसी अवस्था में निम्बू का रस बहुत ही गुणकारी होता है । ज्योंही रोगी की जीभ साफ हो जाय उसे उपरोक्त तरीके से केले का बनाया हुआ पथ्य दे सकते हैं । यदि रोगी को दस्त न आता हो तो गर्म पानी में सुहागा मिला कर पिचकारी देना चाहिए | उसके बाद जैतून के तेल का प्रयोग उसके मेढ़े को साफ कर सकता है ।
१४ - - कब्ज, संग्रहणी, पेचिश, बवासीर
इस प्रकरण में एक ही साथ चार रोगों पर विचार किया जाता है । पाठकों को इसमें कुछ आश्चर्य मालूम होगा, लेकिन वास्तव में ये चारों रोग एक दूसरे से ऐसे सम्बन्धित हैं कि इनका उपचार करीब-करीब एक ही ढङ्ग से किया जा सकता है । जब खाद्य पदार्थ के न पचने से मेदा अधिक गन्दा हो जाता है तब इन रोगों में से कोई एक रोग मनष्य के शरीर की अवस्था के अनुसार हो